श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – शब्दब्रह्म
जंजालों में उलझी
अपनी लघुता पर
जब कभी लज्जित होता हूँ,
मेरे चारों ओर
उमगने लगते हैं
शब्द ही शब्द,
अपने विराट पर
चकित होता हूँ..!
आजका दिन ‘विराट’ हो।
© संजय भारद्वाज
(12.19 बजे, 15.11.2020)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत उम्दा।
लघुता से विराट की ओर प्रयाण
अद्भुत!
हार्दिक बधाई संजय जी।
शब्दों की विराटता -अद्भुत।
शब्द ब्रह्म का विराट रूप , रचनाकार अपने चारों ओर शब्द संसार देखकर चकित हैं ….वाह ! शब्द ब्रह्म की महिमा अपरंपार …..