श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – सापेक्ष
(कल प्रकाशित हुए कवितासंग्रह क्रौंच से)
भारी भीड़ के बीच
कर्णहीन नीरव,
घोर नीरव के बीच
कोलाहल मचाती मूक भीड़,
जाने स्थितियाँ आक्षेप उठाती हैं
या परिभाषाएँ सापेक्ष हो जाती हैं,
कुछ भी हो पर हर बार
मन हो जाता है क्वारंटीन,
क्या कहते हो आइंस्टिन..?
© संजय भारद्वाज
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