श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – चुप्पी….
वह अबाध
बह रहा है,
लहरों का कंपन
भीतर ही भीतर
साँस ले रहा है,
उसके प्रवाह को
बाधा मत पहुँचाना,
समुद्र की शांति होती है;
सच्चे आदमी की चुप्पी..!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 9:37 बजे, 26 नवम्बर 2021
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत खूब !! यही चुप्पी फिर शब्दों का ,विचारों का उबाल लेकर आती और पाठकों को अचंभित कर जाती है।
समुद्र की शांति व सच्चे आदमी की चुप्पी को तोड़ने पर अचंभित करती उपजती रचना ।
चुप्पी अद्भुत रचना -समुद की शांति होती है, उसे बाधा न पहुँचाना ….
सच्चे आदमी की चुप्पी ……..