श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – सहनाववतु
इतना चल चुके,
शिखर अब भी
पहुँच से दूर क्यों है..?
मैं मापता रहा;
अपने साथ अपनों,
कुछ कम अपनों के
हिस्से की भी दूरी,
‘सहनाववतु सहनौभुनक्तु
सहवीर्यं करवावहै’
की परंपरा को
जीना चाहता हूँ,
पहाड़ की साझा चोटियों की
एक कड़ी भर होना चाहता हूँ,
लम्बाई-ऊँचाई के
पैमानों में कोई रस नहीं,
निपट एकाकी शिखर होना
मेरा लक्ष्य नहीं..!
© संजय भारद्वाज
(प्रातः 7:35 बजे, 6 सितंबर 2018)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
‘ निपट एकाकी शिखर होना मेरा लक्ष्य नहीं…’ गागर में सागर समाया हुआ !!??????????
चरित्र में यह एकाकीपन का भाव ही नहीं हे रचनाकार!
तुमने तो सदैव सहयोग और सहकारिता में ही विश्वास रखा है।
ऊँचाई की ऊँचाई प्रतीक्षारत है ऐसे उच्चाकांक्षी के लिए।
निपट एकाकी शिखर होना मेरा लक्ष्य नहीं, प्रेरणादायक बात।
अद्भुत रचना
आदरणीय रचनाकार !
उबूंटू को चरितार्थ करनेवाले रचनाकार का लक्ष्य निपट एकाकी शिखर होना , हो ही नहीं सकता ।
नि:संदेह नित मानवता के शिखर को छूने की क्षमता अपने लक्ष्य तक पहुंचाएगी ।
नेकनीयत यश एवं रचना-शक्ति को पनपाने में सहायक सिद्ध होगी—
सहनाववतु : शांति पथ पर अग्रसर रचनाकार को कोई शक्ति विजय पथ से विमुख नहीं कर सकती ——