श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 22
भारत के प्रसिद्ध प्रतिनिधि मेला-
कुंभ मेला- संस्कृत शब्द ‘कुंभ’ का अर्थ घड़ा होता है। कुंभ विश्व का सबसे बड़ा मेला है। 1989 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में 5 फरवरी को प्रयागराज के मेले में डेढ़ करोड़ लोगों की उपस्थिति और स्नान की पुष्टि की जो एक उद्देश्य के लिए एकत्रित लोगों की सबसे बड़ी भीड़ थी। 2001 में 24 जनवरी को प्रयागराज में अधिकृत रूप से तीन करोड़ लोग उपस्थित थे। अध्यात्म, संस्कृति, धर्म, व्यापार, परंपरा, हर दृष्टि से इसका अनन्य स्थान है। समय साक्षी है कि मानव ने जलस्रोतों के निकट बस्तियाँ बसाईं। यही कारण है कि कुंभ मेला विशाल जलराशि वाले प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नाशिक, प्रत्येक नगर में बारह वर्ष के अंतराल से कुंभ होता है। प्रयागराज में छह वर्ष के अंतराल पर अर्द्धकुंभ भी होता है। हमारी परंपरा में नदियाँ अमृतकुंभ कहलाती हैं। अमृतकुंभ के किनारे जनकुंभ की साक्षी हरिद्वार में माँ गंगा बनती हैं। प्रयागराज में गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम इसका साक्षी होता है। उज्जैन और नासिक में क्रमश: क्षिप्रा और गोदावरी यह दायित्व वहन करती हैं।
मान्यता है कि क्षीरसागर मंथन से प्राप्त अमृत कलश को लेकर देवराज इंद्र के पुत्र जयंत नभ में उड़ चले। पीछा करते दानवों ने धावा बोला तो जयंत के हाथ का कलश थोड़ा-सा छलक पड़ा। इससे पृथ्वी पर उपरोक्त चार स्थानों पर अमृत की बूँदें गिरीं। इसी संदर्भ के कारण इन नगरों में कुंभ का आयोजन होता है।
कुंभ मेला मकर संक्रांति से आरंभ होता है। ज्योतिष के अनुसार इस समय बृहस्पति, कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं तथा सूर्य का मेष राशि में प्रवेश होता है। ग्रहों की स्थिति उन दिनों हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी के गंगाजल को औषधीय प्रभाव से युक्त करती है। यही कारण है इस अवधि में यहाँ स्नान करना आरोग्य के लिए लाभदायक माना गया है। गंगा माँ के तो दर्शनमात्र को मुक्ति का साधन.माना गया है। कहा गया है, ‘गंगे तवदर्शनात् मुक्ति!’
कुंभ में मकर संक्रांति, पौष पूर्णिमा, एकादशी, मौनी अमावस्या के दिन स्नान करना विशेष फलदायी माना जाता है।
कुंभ विश्व का सबसे बड़ा मेला है। जो कारण, मेले के लिए आधार का काम करते हैं, वे सभी इसमें विस्तृत स्तर पर दृष्टिगोचर होते हैं।
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© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
पौराणिक एवं सांस्कृतिक विरासत कि जानकारी जिसका महत्व आज भी है. धन्यवाद! ?
धन्यवाद आदरणीय।
विश्व के सबसे बड़े कुंभ मेले के होने का कारण ,उसकी मान्यताएं व कब, कहां होता है इसकी विस्तृत जानकारी देता अप्रतिम आलेख।
धन्यवाद आदरणीय।
कुंभ मेले की संपूर्ण जानकारी युक्त लेख। बहुत प्रभावित!
धन्यवाद आदरणीय।