श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – कविता – युद्ध के विरुद्ध
कल्पना कीजिए,
आपकी निवासी इमारत
के सामने वाले मैदान में,
आसमान से एकाएक
टूटा और फिर फूटा हो
बम का कोई गोला,
भीषण आवाज़ से
फटने की हद तक
दहल गये हों
कान के परदे,
मैदान में खड़ा
बरगद का
विशाल पेड़
अकस्मात
लुप्त हो गया हो
डालियों पर बसे
घरौंदों के साथ,
नथुनों में हवा की जगह
घुस रही हो बारूदी गंध,
काली पड़ चुकी
मटियाली धरती
भय से समा रही हो
अपनी ही कोख में,
एकाध काले ठूँठ
दिख रहे हों अब भी
किसी योद्धा की
ख़ाक हो चुकी लाश की तरह,
अफरा-तफरी का माहौल हो,
घर, संपत्ति, ज़मीन के
सारे झगड़े भूलकर
बेतहाशा भाग रहा हो आदमी
अपने परिवार के साथ
किसी सुरक्षित
शरणस्थली की तलाश में,
आदमी की
फैल चुकी आँखों में
उतर आई हो
अपनी जान और
अपने घर की औरतों की
देह बचाने की चिंता,
बच्चे-बूढ़े, स्त्री-पुरुष
सबके नाम की
एक-एक गोली लिये
अट्टाहस करता विनाश
सामने खड़ा हो,
भविष्य मर चुका हो,
वर्तमान बचाने का
संघर्ष चल रहा हो,
ऐसे समय में
चैनलों पर युद्ध के
विद्रूप दृश्य
देखना बंद कीजिए,
खुद को झिंझोड़िए,
संघर्ष के रक्तहीन
विकल्पों पर
अनुसंधान कीजिए,
स्वयं को पात्र बनाकर
युद्ध की विभीषिका को
समझने-समझाने का यह
मनोवैज्ञानिक अभ्यास है,
मनुष्यता को बचाये
रखने का यह प्रयास है!
© संजय भारद्वाज
अपराह्न 4:29 बजे, 7 मार्च 2022
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
यथार्थ चित्रण से रची-बसी युद्ध की विभीषिका को दर्शाती उत्कृष्ट रचना बधाई अभिनंदन अभिवादन आदरणीय श्री का ।