श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 29
एकात्म यात्रा- तीर्थयात्रा :
उत्सव, मनुष्य की रगों में रक्त बनकर दौड़ते हैं। प्रकृति ने भीतर सब कुछ दिया है पर उसे चलायमान करना पड़ता है। कुछ वैसे ही जैसे स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलना पड़ता है। यह तो हुआ विज्ञान का पक्ष पर अध्यात्म की दृष्टि से देखें तो जैसे प्रभु श्रीराम ने निष्प्राण अहिल्या में प्राण फूँके, इसी भांति अंतर्भूत उत्सवधर्मिता को पर्व जागृत करते हैं।
पर्व का केंद्र घर होता है। नाते-रिश्तेदार, पास-पड़ोस, मोहल्ला मिलकर पर्व का आनंद बढ़ा देते हैं। पर्व का विस्तार है मेला। मेल-मिलाप के लिए अनगिनत घर परिवार, बृहत्तर समूह संग आता है। एक से पाँच-छह दिन चलने वाला पर्व, मेला में बदलने पर एक सप्ताह से एकाध महीने की अवधि तक चलता है। पर्व से मेला के विस्तार का अगला संस्करण है तीर्थयात्रा।
पर्व घर पर मनाते जाते हैं। मेला घर से कुछ दूरी पर किसी खुले स्थान पर / कस्बा /शहर/कुछ घंटे की दूरी पर तहसील आदि में आयोजित होते हैं। अलबत्ता तीर्थ के लिए न्यूनाधिक पर अनिवार्य रूप से यात्रा करनी पड़ती है। इस यात्रा के कारण में भारतीय समाज मानता है कि अपने कष्टों को हरने की हरि से गुहार लगाने के लिए देह को कुछ कष्ट तो वहन करना ही चाहिए।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
स्थितज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदलते हैं उत्सव तथा मेल
मैलों और तीर्थयात्रा की अद्भुत जानकारी……
बहुत सही कहा आपने कि मनुष्य कि स्थितिज ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में, रोजमर्रा के जीवन की निष्प्राणता में गति यानि खुशियों की परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं पर्व व मेरे।