श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – विश्व कविता दिवस विशेष – शिलालेख
आज विश्व कविता दिवस है। यह बात अलग है कि स्वतः संभूत का कोई समय ही निश्चित नहीं होता तो दिन कैसे होगा? तथापि तथ्य है कि आज यूनेस्को द्वारा मान्य विश्व कविता दिवस है।
बीते कल गौरैया दिवस था, आते कल जल दिवस होगा। लुप्त होते आकाशी और घटते जीवनदानी के बीच टिकी कविता की सनातन बानी! जीवन का सत्य है कि पंछी कितना ही ऊँचा उड़ ले, पानी पीने के लिए उसे धरती पर उतरना ही पड़ता है। आदमी तकनीक, विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में कितना ही आगे चला जाए, मनुष्यता बचाये रखने के लिए उसे लौटना पड़ता है बार-बार कविता की शरण में।
इसी संदर्भ में कविता की शाश्वत यात्रा का एक चित्र अपनी कविता ‘शिलालेख’ के माध्यम से प्रस्तुत है।
कविता नहीं मांगती समय,
न शिल्प विशेष,
न ही कोई साँचा,
जिसमें ढालकर
36-24-36
या ज़ीरो फिगर गढ़ी जा सके,
कविता मांग नहीं रखती
लम्बे चौड़े वक्तव्य
या भारी-भरकम थीसिस की,
कविता तो दौड़ी चली आती है,
नन्ही परी-सी रुनझुन करती,
आँखों में आविष्कारी कुतूहल,
चेहरे पर अबोध सर्वज्ञता के भाव,
एक हाथ में ज़रा-सी मिट्टी
और दूसरे में कल्पवृक्ष के बीज लिये,
कविता के ये क्षण
धुंधला जाएँ तो
विस्मृति हो जाते हैं,
मानसपटल पर उकेर लिये जाएँ तो
शिलालेख कहलाते हैं..!
(कविता संग्रह ‘योंही’ से।)
कविता बनी रहेगी, मनुष्यता बची रहेगी।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
कविता नन्हीं परी सी रुनझुन करती दौड़ी चली आती है। बहुत सुंदर।