श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 34
प्रतिनिधि तीर्थस्थान-
वैदिक संस्कृति ने सनातन धर्म के लिए चार धामों की व्यवस्था की है। ये धाम देश की चार भिन्न दिशाओं में है। चार धाम की यात्रा को सनातन धर्म में जीवन की उपलब्धि माना गया है। चार भिन्न दिशाओं में चार धामों का होना और उनकी यात्रा करना ही एकात्मता का सबसे बड़ा सूत्र है। चारों दिशाएँ मिलकर परिक्रमा पूरी होती है। परिक्रमा से समग्र भला और क्या होगा? जीवन अनेकांत से एकात्म होने का परिभ्रमण भी है, परिक्रमण भी है।
बद्रीनाथ धाम-
बद्रीनाथ धाम, उत्तराखंड के चमोली जनपद में स्थित है। इसका निर्माण सातवीं सदी के लगभग हुआ था। एक समय क्षेत्र में बद्री अर्थात बेर के वृक्षों की सघनता के चलते इसका नाम बद्रीनाथ पड़ा। यहाँ विष्णु जी के विग्रह की पूजा होती है। यह विग्रह नारद कुंड में था। आठवीं सदी में आदिशंकराचार्य ने कुंड में प्रवेश कर विग्रह का उद्धार किया और बद्री विशाल के रूप में इस की प्राण प्रतिष्ठा की। बद्रीनाथ धाम के मुख की ओर नर पर्वत जबकि पीठ की ओर नारायण पर्वत है। यह धाम अलकनंदा और उसकी सहायक ऋषिगंगा नदी के संगम पर स्थित है।
बद्री विशाल के साथ-साथ इस पर्वतीय क्षेत्र में आदिबद्री, योगबद्री, वृद्धबद्री और भविष्यबद्री के मंदिर भी हैं। इन्हें मिलाकर समवेत रूप में ‘पंचबद्री’ के नाम से जाना जाता है। जीवन की अवस्थाओं को दृष्टिगत रखते हुए विग्रह का मानवीकरण कर भविष्य की व्यवस्था करना अद्भुत एकात्म दर्शन है।
वैदिक संस्कृति में एकात्मता के सूत्र पग-पग पर हैं। इसका चैतन्य प्रमाण है कि बद्रीनाथ धाम में मुख्य पुजारी के रूप में केरल के नंबूद्रि ब्राह्मणों की नियुक्ति की जाती है। इन्हें यहाँ रावल कहा जाता है। कहाँ हिमालय की चोटियों में बसा गढ़वाल और कहाँ समुद्र तट पर स्थित केरल! भाषा, रहन-सहन, भोजन, परंपरा सब में अंतर। तथापि अंतर से ऊपर है अवांतर। अवांतर अर्थात अंतर्भूत। एकात्मता सनातन धर्म की अंतर्भूत दृष्टि है। पहाड़ और समुद्र के संगम का श्रेय आदिशंकराचार्य जी को है। वैदिक पुनर्जागरण के इस पुरोधा ने चारों धामों में चार पीठों की स्थापना की जिन्हें शंकराचार्य पीठ के रूप में जाना जाता है। इसी अनुक्रम में बद्री विशाल के क्षेत्र में ज्योतिर्मठ स्थित है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
बद्रीनाथ धाम की तीर्थयात्रा का विस्तृत वर्णन। जय श्री बद्रीनाथ जी की। अप्रतिम आलेख।