श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 36
जगन्नाथ पुरी-
भारत के पूर्व में ओडिशा राज्य के पूर्वी समुद्री तट पर स्थित है जगन्नाथ पुरी। अनुसंधान इसे दसवीं सदी का मंदिर मानते हैं तथापि धार्मिक मान्यता इसके आदिकाल से यहाँ स्थित होने की है। भगवान जगन्नाथ, अपने बड़े भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ यहाँ विराजमान हैं। भाई-बहन की मूर्तियों वाला यह एकमात्र मंदिर है। ये मूर्तियाँ लकड़ी से बनी होती हैं। बारह वर्ष पश्चात इन्हें बदला जाता है। इन मूर्तियों के चरण नहीं हैं। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के हाथ तो हैं किंतु कलाई और उंगलियाँ नहीं हैं। इसके पीछे अन्याय किंवदंतियाँ हैं।
इस मंदिर को लेकर अनेक आँखों दिखती आध्यात्मिक विशेषताएँ हैं। मंदिर की ध्वजा का हवा की विपरीत दिशा में उड़ना, सिंहद्वार से अंदर पग रखते ही समुद्र का कोलाहल न सुनाई देना, मंदिर के कंगूरों पर पक्षियों का न बैठना, अक्षय रसोई की पद्धति आदि का इनमें समावेश है।
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को आरंभ होने वाला जगन्नाथ पुरी का रथयात्रा उत्सव अब अंतरराष्ट्रीय आकर्षण है। ‘नंदीघोष’ नामक रथ में भगवान जगन्नाथ, ‘तालध्वज’ में बलभद्र और ‘दर्पदलन’ में देवी सुभद्रा की मूर्तियाँ आरूढ़ होती हैं। मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक रथों को खींचकर ले जाया जाता है। सात दिनों तक भगवान द्वारा विश्राम लेने के बाद रथों को रस्सियों से खींच कर पुनः मुख्य मंदिर तक लाया जाता है। इन रथों को भक्त खींचते हैं।
ध्यान देनेवाली बात है कि भक्त, भगवान के दर्शन के लिए मंदिर जाता है। रथयात्रा में भगवान, मंदिर से निकलकर भक्तों के बीच आते हैं। समता और लोकतंत्र की यही मूलभूत अवधारणा भी है।
जगन्नाथपुरी में आदिशंकराचार्य द्वारा स्थापित गोवर्धन पीठ है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
भगवान जगन्नाथ, अपने बड़े भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथपुरी में विराजमान हैं। भक्तगण की भक्ति भावना का प्रत्यक्ष प्रमाण है रथयात्रा ..….
क्रमशः…
रथयात्रा केअवसर पर भगवान भक्तों से मिलने मंदिर से बाहर आते हैं , स्वयं भक्ति रस में डूबकर भक्तजनों को भी उसी रस में डुबोकर अनन्य भक्त और भगवान के बीच के संबंध को स्थापित करते हैं … भारतीय भक्ति परंपरा को
अभिवादन💐