श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – अविनाशी
कभी पहाड़ से कूदता है,
कभी आग में लोटता है,
कभी पानी में उतरता है
कभी चाकू से गोदता है,
चीखता है, चिल्लाता है,
रोता है, गिड़गिड़ाता है,
चोला बदलने के लिए
कई पापड़ बेलता है,
सहानुभूति का पात्र है
जर्मन लोक-कथाओं में
अमरता का वरदान पाया
वह अभिशप्त राक्षस..,
अमर्त्य होने की इच्छा पर
अंकुश कब लगाओगे मनुज,
अपनी अविनाशी नश्वरता का
उत्सव कब मनाओगे मनुज.?
© संजय भारद्वाज
रात्रि 1:53 बजे, 14.4.2019
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
आज मनुज , मनुज नहीं स्वार्थ और विध्वंस का राक्षस है। उसी *चाहिदा* चाहत , लोभ, ईप्सा सब अपरिमित है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।