श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – तीन लघुकथाएँ
[1]
जादूगर
जादूगर की जान का रहस्य, अब रहस्य न रहा। उधर उसने तोते को पकड़ा, इधर जादूगर छटपटाने लगा।…..देर तक छटपटाया मैं, जब तक मेरी कलम लौटकर मेरे हाथों में न आ गई।
[2]
अहम् ब्रह्मास्मि!
अहम् ब्रह्मास्मि..!…सुनकर अच्छा लगता है न!…मैं ब्रह्म हूँ।….ब्रह्म मुझमें ही अंतर्भूत है।
….ब्रह्म सब देखता है, ब्रह्म सब जानता है।
अपने आचरण को देख रहे हो न?…अपने आचरण को जान रहे हो न?
बस इतना ही कहना था..!
[3]
नो एडमिशन
‘नो एडमिशन विदाउट परमिशन’, अनुमति के बिना प्रवेश मना है, उसके केबिन के आगे बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। निरक्षर है या धृष्ट, यह तो जाँच का विषय है पर पता नहीं मौत ने कैसे भीतर प्रवेश पा लिया। अपने केबिन में कुर्सी पर मृत पाया गया वह।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
१)- बहुत सुंदर – कलम का जादूगर, कलम आने तक जोर से छटपटाया इस प्रकार वो फिर से पुनः जीवन पा गया।
२)- स्वयं को अहं ब्रहमास्मि कहना तो गुरूर की बात है, पर उससे पहले मैं कर्मों पर ध्यान देना आवश्यक है कि क्या वो इस लायक है।
३)- ‘नो एडमिशन विदाउट पर मिशन की तख्ती लगाने वाले शायद यह भूल जाते हैं कि वो बाकी सबको तो रोक देंगे अंदर प्रवेश पाने से, पर, मौत को परमिशन देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। वो लंबे पाॅंव कहीं भी प्रवेश कर जाती है।