श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
(We present an English Version of this Hindi Poetry “पिंजरा” as ☆ Caged Willpower ☆. We extend our heartiest thanks to Captain Pravin Raghuvanshi Ji for this beautiful translation. )
☆ संजय दृष्टि – पिंजरा ☆
पिंजरे की चारदीवारियों में
फड़फड़ाते हैं मेरे पंख
खुला आकाश देखकर
आपस में टकराते हैं मेरे पंख,
मैं चोटिल हो उठता हूँ
अपने पंख खुद नोंच बैठता हूँ
अपनी असहायता को
आक्रोश में बदल देता हूँ,
चीखता हूँ, चिल्लाता हूँ
अपलक नीलाभ निहारता हूँ,
फिर थक जाता हूँ
टूट जाता हूँ
अपनी दिनचर्या के
समझौतों तले बैठ जाता हूँ,
दुःख कैद में रहने का नहीं
खुद से हारने का है
क्योंकि पिंजरा मैंने ही चुना है
आकाश की ऊँचाइयों से डरकर
और आकाश छूना भी मैं ही चाहता हूँ
इस कैद से ऊबकर,
एक साथ, दोनों साथ
न मुमकिन था, न है
इसी ऊहापोह में रीत जाता हूँ
खुले बादलों का आमंत्रण देख
पिंजरे से लड़ने का प्रण लेता हूँ
फिर बिन उड़े
पिंजरे में मिली रोटी देख
पंख समेट लेता हूँ,
अनुत्तरित-सा प्रश्न है
कैद किसने, किसको कर रखा है?
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
जिस दिन मनुष्य स्वयं ही अपने क़ैद के घेरे से निकल आएगा दुनिया ही उसे अद्भुत सुंदर नज़र आएंगी और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।सच है और सोचने वाली बात है कि क़ैद किसने किसे कर रखा है!!!
कैद किसने , किसको कर रखा है ? जीव सहज प्राप्त
उपलब्धियों का ऐसा आदी हो जाता है कि हर बंधन स्वीकृत है उसे ।