श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
🕉️ मार्गशीष साधना🌻
बुधवार 9 नवम्बर से मार्गशीष साधना आरम्भ होगी। इसका साधना मंत्र होगा-
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
संजय दृष्टि – विस्मय
वे दिखते हैं
जनवादी और
प्रगतिशील मंचों पर
‘सांस्कृतिक अस्मिता’ की
बखिया उधेड़ते हुए,
संस्कृति और इतिहास की
रक्षा के लिए सन्नद्ध खेमों में
‘वाम’ शब्द के अक्षरों और
मात्रा के चीथड़े करते हुए,
घोर साम्प्रदायिक आयोजनों और
सरकारी सेकुलरों की जमात में
समानुपाती संतुलन बनाते हुए,
हर तरह की सत्ता से
करीबी नाता जोड़
व्यवस्था को सदा गरियाते हुए,
अनुदान, प्रकाशन;
पुरस्कार की फेहरिस्त पर छाते हुए,
‘विद्रोही’ से लेकर
‘उपासक’ तक की उपाधि पाते हुए,
सुनो साथियो!
मैं चकित हूँ
अपने समय पर,
राजनीति और साहित्य की
अंतररेखा का अपहरण हुए
अरसा बीत गया और
हमें पता भी न चला!
मैं सचमुच चकित हूँ!!
© संजय भारद्वाज
( बुधवार, दि 31.5.2017, प्रातः 11.08)
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
वैसे मौकापरस्त लोगों के लिए कोई भी शब्द मायने नहीं रखता। वह अपने फ़ायदे के लिए किसी भी भीड़ में शामिल हो जाते हैं। लोकतंत्र की यही एक मर्यादा है।फिर भी लोकतंत्र नये मंचों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। 👍🏻