यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 2 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
New Jersey में सुबह घूमते हुए…
सड़क किनारे, खुले में पेड़ के नीचे ज्यादा शायद शतरंजी बुद्धि, तेजी से चलती है। तभी तो सीमेंट के पक्के टेबल पर स्थाई शतरंज का बोर्ड बनाया दिखता है।
लोकतंत्र में पैदल भी वजीर बन सकता है ।
घोड़े, हॉर्स-ट्रेडिंग का हिस्सा बनकर ढाई घर की चालें चले बिना मानते ही नहीं।
ऊंट तिरछा ही भाग रहे हैं।
मुंशी प्रेमचंद की 1924 में लिखी कहानी शतरंज के खिलाड़ी पर आधारित फिल्म भारतीय सिनेमा की एक यादगार फिल्म रही है।
शतरंज के बोर्ड के मजेदार मैथेमेटिकल किस्से हैं। एक बार एक राजा से इनाम में एक गणितज्ञ ने कहा कि मुझे बस पहले दिन गेहूं के एक दाने से शुरू कर प्रतिदिन दो गुना करते हुए, शतरंज के 64 खानों के अनुसार गेहूं के दाने इनाम में दिए जाए। राजा ने हंसते हुए यह स्वीकार कर लिया, पर जल्दी ही उसे गणितज्ञ की प्रतिभा समझ आ गई, वह सारे राज्य की फसल देकर भी इस गणितीय इनाम को देने में असमर्थ था, आप भी केल्कुलेटर से गुणा भाग लगाते हुए जरा अंदाजा लगाइये।
कल मिलते हैं।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈