श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) से सेवानिवृत्त हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। आपको वैचारिक व सामाजिक लेखन हेतु अनेक पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।आज प्रस्तुत है आपकी विदेश यात्रा के संस्मरणों पर आधारित एक विचारणीय आलेख – ”न्यू जर्सी से डायरी…”।)

? यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 15 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ?

किसी भी देश की राज मुद्रा वहां की संस्कृति की संवाहक भी होती है । आज बिट क्वाइन का जमाना आ चुका है । जल्दी ही भारत सरकार भी ई-रुपया जारी करने वाली है । हमारे रुपए बड़े रंग बिरंगे हैं, जिससे रंग, आकार से ही उसकी कीमत की पहचान हो जाती है । महात्मा गांधी जिन्हें कभी धन संपत्ति रुपयों से कोई लगाव नहीं रहा उन्हें राष्ट्र पिता बनाकर हमने हर नोट पर छाप रखा है।

यहां अमेरिका में हर डालर लगभग एक से रंग रूप और आकार का है, बस उस पर लिखा मूल्य अलग है । मतलब खर्च करने के लिए भी पढ़ा लिखा होना जरूरी है ।

यहां की करेंसी की जानकारी इस लिंक पर सुलभ है >> https://www.uscurrency.gov/denominations

नया जमाना डेबिट या क्रेडिट कार्ड के प्लास्टिक मनी जमाने से मोबाइल के टैप से खर्च करने में तब्दील हो चुका है । सब वे प्लेटफार्म में एंट्री के लिए किसी टिकिट की अनिवार्यता नहीं , बस अपना गूगल पे से जुड़ा मोबाइल टैप कीजिए और डालर अकाउंट से कट जायेंगे , गेट खुल जायेगा , भीतर जाइए और मनचाहा सफर कीजिए ।
रेस्त्रां में , किसी भी शाप पर खरीदी कीजिए और मोबाइल स्वाइप कर के भुगतान कर दीजिए ।

हमने एक प्रसिद्ध चाइनीज रेस्त्रां में भोजन किया , भुगतान के लिए मैंने अपना स्टेट बैंक आफ इंडिया का कार्ड देना चाहा तो बेटे ने देख कर बताया कि यदि उससे भुगतान किया गया तो प्रति डालर लगभग 9 रुपए अतिरिक्त लगेंगे, जो बैंक करेंसी कनवर्शन चार्ज है । बेटे ने बताया की वाइज एप सबसे कम चार्जेज पर इंटरनेशनल मनी कनवरशन करता है। उसने मुझे उसका चेज बैंक का कार्ड सौंप रखा है और उसी से सारे भुगतान करने की हिदायत दी है।

कितना बड़ा हो गया है वह जिसे लेकर कभी मैं स्कूटर पर उसकी पसंद की किताबे खरीदा करता था, अब वह मुझे कार में बैठा विदेश में मेरे लिए पूछ पूछ कर जबरदस्ती खरीदी करता है।

विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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