डॉ कुंवर प्रेमिल
(संस्कारधानी जबलपुर के वरिष्ठतम साहित्यकार डॉ कुंवर प्रेमिल जी को विगत 50 वर्षों से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में सतत लेखन का अनुभव हैं। अब तक 350 से अधिक लघुकथाएं रचित एवं ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। आपकी लघुकथा ‘पूर्वाभ्यास’ को उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगांव के द्वितीय वर्ष स्नातक पाठ्यक्रम सत्र 2019-20 में शामिल किया गया है। वरिष्ठतम साहित्यकारों की पीढ़ी ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई सामाजिक समस्याओं से स्वयं की पीढ़ी एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। हम लोग इस पीढ़ी का आशीर्वाद पाकर कृतज्ञ हैं।
आपने लघु कथा को लेकर एक प्रयोग किया है। एक विषय पर अनेक लघुकथाएं लिखकर। इस श्रृंखला में शादी-ब्याह विषय पर हमने प्रतिदिन आपकी दो लघुकथाएं धारावाहिक स्वरुप में प्रस्तुत की थी। आज प्रस्तुत है इस श्रृंखला की अंतिम लघुकथा “एडजेस्टमेंट”।
इस प्रयोग को हमारे प्रबुद्ध पाठकों से भरपूर प्रतिसाद मिला। इस प्रेरणा से हम कल से लघुकथाओं की एक नवीन श्रृंखला “औरत ” शीर्षक से प्रारम्भ कर रहे हैं। हमें पूर्ण विश्वास है कि आपका स्नेह एवं प्रतिसाद प्राप्त होगा। )
☆ धारावाहिक लघुकथाएं – शादी-ब्याह#8 – एडजेस्टमेंट ☆
उस घर की बहू अलससुबह प्रतिदिन चार बजे उठकर काम से लग जाती है। सब्जी काटती है।आटा गूँथती है। फिर नाश्ते के लिए पराठे और लंच के लिए चपातियाँ।
दो सब्जियाँ, एक प्याज वाली दूसरी बिना प्याज की, दो प्रकार के चावल, एक सामान्य, दूसरा ब्राउन। उठने पर घरवालों की चाय भी,एक शुगर वाली दूसरी बिना शुगर वाली।
दूध वाले से दूध, दूर से फेंके गये अखबार को उठाकर सही जगह रखना भी साथ में है।
किसी तरह दौड़-भाग कर आफिस पहुचकर सॉंस ले भी न पाती कि साहब का बुलावा आ जाता।
घर वाले कहते हैं – कौन सा तीर मार लेती है? फिर घर और आफिस के बीच एडजेस्टमेंट दूसरा कौन करेगा?
फिर शादी -बयाह कर लाए किसलिए हैं?
© डॉ कुँवर प्रेमिल
एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈