डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ धारावाहिक लघुकथाएं – औरत #1 – [1] गलतबयानी [2] आश्वस्त ☆
[1]
गलतबयानी
बाबा आदम के जमाने से ठगी गयी है औरत – एक औरत ने कहा तो सभी औरतों ने मान लिया।
अप्रिय भूत को भुलाकर वर्तमान से जुड़ने में भी सफल हुयी है औरत – दूसरी औरत ने कहा और सभी औरतों ने मान लिया।
आदमी ने औरत को जिस मुकाम तक पहुंचाया है, इसे नहीं मान रही है औरत।
वह इसे आदमी की गलतबयानी मान रही है औरत।
[2]
आश्वस्त
एक जीव बोला – मुझे औरत बना दीजिए सर।
ब्रह्मा मुस्कुरा कर बोले – क्यों भला?
इसलिए कि औरत का किरदार बड़ा कठिन और जीवट। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अभी तक वह पुरुष को राह पर नहीं ला पारी है। जो बहुत जरूरी है।
ब्रह्मा ने तथास्तु कहकर आंखें बंद कर ली। वह औरत के भविष्य के प्रति आश्वस्त हो चुका था।
पर ब्रह्माणी उस औरत को पागल-बेवकूफ समझ रही थी। शायद वह औरत की बरबादी से अनभिज्ञ रही होगी।
© डॉ कुँवर प्रेमिल
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≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
पितामह अभीभी आश्वस्त हैं।बधाई