डॉ . प्रदीप शशांक
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित बदलते सामाजिक परिवेश पर विवशता पर विचार करने योग्य एक सार्थक लघुकथा “ विवशता ”.)
☆ लघुकथा – विवशता ☆
मोहनलाल की लड़की सुंदर , सुशील, संस्कारित एवं गृह कार्य में दक्ष थी । बचपन से मिले सुसंस्कार एवं शर्मीले स्वभाव के कारण वह वर्तमान परिवेश की आधुनिकता से कोसों दूर थी । पढ़ने में रुचि होने के कारण स्नातक होने के बाद अन्य विभिन्न डिग्रियों को प्राप्त करते -करते उसकी उम्र 28 वर्ष हो चुकी थी।
मोहनलाल अपनी लड़की की शादी हेतु बहुत परेशान थे। रिश्ते आ तो बहुत रहे थे, लेकिन लड़के वालों की मांग उनकी हैसियत से बहुत अधिक होने के कारण वे मन मसोस कर रह जाते।
एक शाम वे आफिस से घर पहुंचे तो उनकी पत्नी ने उनसे कहा – “क्यों जी, आपने कुछ सुना, मेहता साहब की लड़की ने लव मैरिज कर ली, घर से भाग कर।”
पत्नी की बात सुन वे गुमसुम से अपने अंदर उठते विचारों के अंतर्द्वंद्व में उलझ से गये ।वे सोचने लगे कि कालोनी के नामचीन इंजीनियर मेहता साहब, जिनके पास आधुनिक विलासिता से युक्त समस्त सुविधा है, लक्ष्मी की असीम कृपा से उनके घर पर मानो रुपयों की बाढ़ आती है। वे अपनी लड़की की शादी में लाखों रुपये सिर्फ दिखावटी तामझाम पर खर्च कर सकते हैं, लेकिन उन्हें कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ा।
और एक वे हैं , जो अपनी लड़की की शादी पर्याप्त धन न होने के कारण नहीं कर पा रहे हैं। काश उनकी लड़की भी …..।
© डॉ . प्रदीप शशांक