डॉ . प्रदीप शशांक
(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक सार्थक लघुकथा “संगमरमर ”.)
☆ लघुकथा – संगमरमर ☆
प्रशांत ने अपनी जमापूंजी एवं लोन लेकर अपने सपनों का घर बनवाया था । उसमें अपनी पसंद के संगमरमर के पत्थर हॉल , बेडरूम एवं बाथरूम के फर्श पर लगवाये थे। आज प्रशांत तथा रश्मि बहुत खुश थे , ग्रह प्रवेश पर उन्होंने अपने सभी रिश्तेदारों एवं मित्रों को आमंत्रित किया था । सभी उसके घर की बहुत तारीफ कर रहे थे । देर रात तक पार्टी समाप्त हुई , दोनों मेहमानों की आवभगत करते करते बहुत थक चुके थे ।
रश्मि बाथरूम गई , संगमरमरी फर्श पर पानी पड़ा होने से उसका पैर अचानक फिसला और वह सिर के बल गिरी , उसका सिर फट गया । रश्मि की चीख सुनकर वह भी हड़बड़ाहट में बाथरूम की ओर भागा , तभी उसका भी पैर फिसला तथा उसका माथा नल की टोंटी से टकराकर फट गया ।
संगमरमरी मकान में रहने का सुख भोगने के पूर्व ही दोनों संग मर गये ।
© डॉ . प्रदीप शशांक