डॉ कुंवर प्रेमिल

(डॉ कुंवर प्रेमिल जी  जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में लगातार लेखन का अनुभव हैं। अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। वरिष्ठतम नागरिकों ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक जीवन की कई  सामाजिक समस्याओं /महामारियों से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है,जो कदाचित उनकी रचनाओं में झलकता है। आज प्रस्तुत है  उनकी एक सार्थक लघुकथा  “सफेद भेड़ें काली भेड़ें ”। )

☆ लघुकथा – सफेद भेड़ें काली भेड़ें ☆  

रातों रात सबकी सब भेड़ें काली हो गई . जहां भी जातीं वही प्रतीत होता कि काली अंधारी रात कंबल ओढ़ कर आगे खड़ी है.

एक बूढ़ी भेड़ से रहा नहीं गया. उसने एक काली भेड़ को बुलाकर पूछा- “क्यूंरी छोरियों यह क्या गजब हुआ? सफेद झक चांदनी सी तुम सब सफेद भेड़ें रातों रात काली कलूटी बनकर क्यों घूम रही हो भला?”

काली भेड़ बोली- “दादा अम्मां, जब सभी काले धंधो मैं निर्लिप्त हो बाकी बची हुईं को भी समय रहते चेत जाना चाहिए. जितनी वजन दारी होगी, भविष्य मैं उतनी ही चलेगी. सफेद बूढ़ी भेड़  बोली- “तू ठीक कहती है छोरी. मै भी आज सफ़ेद से काली भेड़ बन जाऊँगी. मैं  तो जैसे बिल्कुल अकेले ही पड़ गई थी. हाँ नहीं तो….. ”

आज की तारीख में वह सफेद भेड़ भी अपना रंग -रूप बदलने मेकअप रूम चली गई थी.

© डॉ कुँवर प्रेमिल

एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

3.5 2 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
Shyam Khaparde

अच्छी रचना