सुश्री अनीता श्रीवास्तव
☆ व्यंग्य ☆ बड़ा साहित्यकार ☆ सुश्री अनीता श्रीवास्तव ☆
कल श्री घोंघा प्रसाद “कालपुरी” जी का फोन आया . बोले – घर पर गोष्ठी है . मैंने अभिवादन किया मगर गोष्ठी की बात पर कुछ नहीं कहा . मेरी उदासीनता ने उन्हें गोष्ठी के बारे में कुछ अधिक बताने को प्रेरित किया . वे गला ठीक करते हुए बोले- सभी बड़े साहित्यकार गोष्ठी में आ रहे हैं . गोष्ठी का आयोजन अमुक के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में रखा गया है l आप आएँगीं तो अच्छा होगा . मैं सोचने लगी इस शहर में बड़े साहित्यकार कौन हैं? व्यक्तिगत मेल- मिलाप में तो कालपुरी जी सभी को छोटा बता चुके हैं – फलां की भाषा क्लिष्ट है, अमुक की व्याकरण ठीक नहीं या इनको तो सिवाय लफ्फाजी के कुछ सूझता नहीं . फिर ये बड़े साहित्य कार हैं कौन ! मुझे संकोच हुआ- इतने बड़े साहित्यकारों के सामने मैं क्या मुँह खोलूँगी भला !
मैं नियत दिन व समय पर गोष्ठी में सम्मिलित होने घर से निकली लेकिन जाम में फंसने के कारण विलम्ब से पहुंची. मैंने देखा काव्य पाठ चल रहा है. अभिवादन करके बैठ गई. मेरा नाम बाद में था, जान कर सुकून मिला. मेरी आँखें वहाँ बड़े साहित्यकार को तलाश रहीं थी. सभी पहचाने चेहरे थे.
गोष्ठी शबाब पर पहुँचने के साथ ही वाह वाही जोर पकड़ती जा रही थी. मेरा मन खोज में ही लगा था. निदान होते न देख मैंने पूछ ही लिया , “आप में से बड़े साहित्यकार कौन हैं ?” कहते हुए मेरी नजर जिन पर टिकी थी वे तनिक लजा गए और बोले- मैं तो छोटा सा कलम का सिपाही हूँ.
मेरी नज़र दूसरे पर शिफ्ट हो गई. वे बोले- जी मैं तो वाणी का मामूली सा साधक हूँ.
तीसरे- मैं तो बस थोड़ा बहुत ही…आप सबके आशीर्वाद से… हें हें हें.
इसी प्रकार सभी ने अपने आप को छोटा बताया. मैं हैरान. जब सभी छोटे हैं तो बड़ा साहित्यकार कौन है! मेरी हालत भांप कर कालपुरी जी खड़े हुए और अपने ठीक सामने विराजित कवि से बोले- जब कोई पूछे कि बड़ा साहित्य कार कौन है तो आपको अपने बारे में कुछ नहीं कहना चाहिए. आपको अपने बगल में बैठे साहित्यकार को बड़ा बताना चाहिए, भले ही आपका मन साथ न दे. बदले में वह भी आपको बड़ा बताएगा. साहित्यकार इसी तरह बड़ा बनता है. मेरा नादान मन प्रफुल्लित हो उठा. मैं तत्काल समझ गई बड़ा साहित्यकार कौन होता है. जैसा मेरी शंका का समाधान हुआ, ठाकुर जी करें, सबका हो.
© सुश्री अनीता श्रीवास्तव
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