श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी के साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल में आज प्रस्तुत है उनका एक अतिसुन्दर व्यंग्य “भाईसाब हमारा नंबर कब आएगा ?”। इस स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक हैं ।यदि किसी व्यक्ति या घटना से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि प्रत्येक व्यंग्य को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। )
☆ शेष कुशल # 27 ☆
☆ व्यंग्य – “भाईसाब हमारा नंबर कब आएगा ?” – शांतिलाल जैन ☆
मान लीजिए कभी मन करे आपका कि कोई आपको बुरी तरह से झिड़क दे, बदतमीज़ी करे, जलील करने की सीमा तक डांट दे. आपको अपनी एक छोटी सी उतावल पर बड़ी सी ग्लानि के दौर से गुजरने का अनुभव लेना हो तो सलाह ये कि आप एक बेहद भीड़वाले व्यस्त डॉक्टर के यहाँ परामर्श लेने जाएँ और लंबी प्रतीक्षा के बीच उसके चेम्बर के दरवाजे के ठीक बाहर मौजूद अटेंडेंट-बॉय से दो बार पूछ लें – ‘भाईसाब हमारा नंबर कब आएगा ?’
उस रोज़ पहलीबार लगा कि पेट का दर्द कितना भी असहनीय क्यों न हो – अटेंडेंट-बॉय की झिड़की से ज्यादा असहनीय तो नहीं होता. नंबर सात बजे का मिला था और साढ़े आठ बज चुके थे. प्रतीक्षा-बेंचो पर बिखरी पड़ीं, कवर फटी पुरानी स्टार-डस्टों को कई बार पलटकर देख चुका था, पेट का दर्द और इंतिजारजनित ऊब उर्मिला मतोंडकरों की मुस्कानों से कम नहीं होती थी. वाट्स-अप देखने का भी मन नहीं किया. डॉक्साब के घर से डिस्कार्डेड कूबड़ निकले पुराने टीवी पर समझ नहीं पड़ता था ये एम-टीवी है कि एफ-टीवी है. बेचैनी अपने चरम पर थी, इस बीच मेरी मति मारी गई जो दो बार पूछ लिया – भाईसाब हमारा नंबर कब आएगा ? यकीनन, यहाँ नौकरी करने से पहले उसने व्यवहार कला का प्रशिक्षण पुलिसवालों से लिया होगा. झिड़की से पेट दर्द में टेंपरेरी रिलीफ मिला, आहत् होने के दर्द के मुक़ाबिल पेट का दर्द कुछ देर को मैं भूल ही गया. मेरी खुशनसीबी यह रही कि मुझे एंटी-रैबीज का इंजेक्शन लगवाने की जरूरत भी नहीं पड़ी.
वैसे देखा जाए तो मुझे उस समय उससे सवाल नहीं पूछना चाहिए था जिस समय वह मोबाईल पर फन्नी वीडियो देखने में मशगूल था. दस मिनिट के बाद दूसरीबार गलती तब हुई कि जब पेट में एक तेज़ मरोड़ सी उठी. वह अपनी अभिसारिका से मोबाइल पर इज़हार-ए-ईश्क कर रहा था और मैंने पूछ लिया – ‘भाईसाब हमारा नंबर कब आएगा ?’ आप ऐसी गलती मत कीजिएगा. और हाँ अगर दर्द पेट का हो तो एक वयस्क साईज़ का डायपर जरूर पहनकर जाएँ. हो सकता है बीमारी के कारण नहीं तो झिड़की के कारण वह उपयोग में आ जाए.
एक बार आँखों के डॉक्टर के यहाँ भी यही गलती की थी मैंने. ‘नंबर कब आएगा’ के जवाब में एक नर्स आई और आँखों में जाने-कौन से ड्रॉप की दो बूंद डाल कर पैंतालीस मिनिट आँखें और मुँह दोनों बंद रखने का फरमान जारी करके चली गई. चालीस मिनिट बाद एक बार पलकें ऊँची करके उसने टॉर्च मारी और फिर से दो बूंद डाल कर पैंतालीस मिनिट को आँखें और मुँह दोनों लॉक कर गई.
बहरहाल, ‘नंबर कब आएगा’ ये वो मुझे क्यों बताता ? वेटिंग हॉल उसकी टेरेटरी है, उसका साम्राज्य है, यहाँ उसकी अपनी एक सत्ता है, उसने जो कह दिया वही कानून है, उसने जो दे दी वही व्यवस्था है. लांग-कॉपी से फाड़े गए एक पन्ने पर बेतरतीबी से दर्ज़ किए गए नाम हैं जो सीएए-एनआरसी के रजिस्टर से ज्यादा डरावने हैं. उसके पास पॉवर है. क्रम में हेरा-फेरी उसका गुनाह नहीं उसका विशेषाधिकार है. भाई-भतीजे विधायकों मंत्रियों के ही नहीं होते, उसके भी होते हैं. आंटियाँ उसके मोहल्ले में भी रहती हैं.
खैर, नौ बजकर चार मिनिट और सत्ताईस सेकेंड्स पर गोचर का प्रभाव दिखा, राहू के नीच घर में प्रवेश करते ही अनुकूल परिवर्तन हुआ. जब डॉक्साब पर्चा लिख रहे थे तब मन किया कि पूछ ही लिया जाए – सर आप इस कदर शिष्ट, सौम्य, शालीन, सुसभ्य, शाईस्तगी से पेश आनेवाले ज़हीन शख्स हैं और आप ही का मुलाज़िम इस कदर ……? चलो, जाने भी दो यारों.
© शांतिलाल जैन
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