डॉ मधुकांत  

(ई-अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मधुकांत जी का हार्दिक स्वागत)

संक्षिप्त परिचय  

जन्म – 11अक्टूबर1949( सांपला-हरियाणा )

पुरस्कार, सम्मान – हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला से बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान तथा महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान (पांच लाख) महामहिम राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री हरियाणा द्वारा पुरस्कृत ।

प्रकाशित साहित्य (175पुस्तकें) – 09 उपन्यास, 13 कहानी – 28 लघुकथा-15 कविता, 42 –  बाल साहित्य, 34 अन्य, 34 संपादन।  रचनाओं पर शोध कार्य।

नाटक ‘युवा क्रांति के शोले’ महाराष्ट्र सरकार के 12वीं कक्षा की हिंदी पुस्तक युवक भारती में सम्मिलित।  रचनाओं का 27 भाषाओं में अनुवाद

संप्रति –सेवानिवृत्त अध्यापक, स्वतंत्र लेखन ,रक्तदान सेवा तथा हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंथा के नाटक अंक का संपादन।   प्रज्ञा साहित्यिक मंच के संरक्षक 

☆ व्यंग्य – अकादमी का भूत ☆ डॉ मधुकांत ☆

लाख जतन किए परंतु सब निष्फल। निदेशक महोदय से लेकर चपरासी तक कभी बैठक करते, कभी अकेले में चिंतन करते… समझने का प्रयत्न करते… परंतु सब समझ से परे…। समझ में आए या ना आए परंतु यह कैसे घोषणा कर दें कि साहित्य अकादमी के कार्यालय में भूत का साया है ।जो साहित्य समाज को दिशा प्रदान करता है वह अपने माथे पर अंधविश्वास का कलंक कैसे लगने दें ।

पहली -दूसरी घटना पर किसी ने विशेष ध्यान न दिया परंतु साक्षात को प्रमाण की क्या आवश्यकता। सुबह-सुबह साहित्य अकादमी के पुरस्कारों की लिस्ट गायब हुई ।दूसरी लिस्ट निकाली गई तो सारे पुरस्कार उल्टे सीधे हो गए। मुख्यमंत्री के पी ए साहब का प्रतिदिन फोन आ जाता, ‘आज ही पुरस्कृत साहित्यकारों की लिस्ट भेजो ।चुनाव का बिगुल बजने वाला है ।इससे पूर्व पुरस्कारों की घोषणा हो जानी चाहिए…’। तीसरी लिस्ट तैयार की गई तो पी ए साहब दो दिन के लिए बाहर चले गए ।

अगले दिन सारा स्टाफ निदेशक लाल पांडे के ऑफिस में  जमा हो गया ।मेज पर रखी पुरस्कारों की लिस्ट पर समीप में लुढकी पड़ी स्याही की दवा ने भूत जैसा आतंकित चित्र बना दिया । पंखे के रेगुलेटर से अचानक सपार्किंग के साथ जोरदार चिंगारी निकली और पंखे की आवाज एकदम बढ़ गई। तेज हवा से कुर्सी का टॉवल उड़कर गायब हो गया। बाथरूम के अंदर से टप टप पानी गिरने की भयानक आवाज आने लगी। ऑफिस की कुंडी में लटकता हुआ ताला जोर-जोर से हिलने लगा…। सब देखकर लाल पांडे की चीख निकल गई। आवाज सुनकर उनकी सचिव कविता भागी आई ,सर यह किसी भूत-प्रेत का ही काम है…कुछ ना कुछ कराना पड़ेगा…।

 तो क्या करें एक तो दफ्तर में भूत, दूसरा मुख्यमंत्री का भूत… लाल पांडे घबरा गए । “चिंता क्या है सर, लिस्ट तो आपके कंप्यूटर में है एक और निकाल लीजिए ।मैं खुद जाकर दे आती हूं…” मैम कविता ने सुझाया ।

लाल पांडे जी अपनी उंगलियों को कंप्यूटर पर चलाने लगे। कंप्यूटर में फाइल गायब पाकर उनके माथे पर पसीना आ गया। कुर्सी के पीछे खड़ी मैम कविता भी यह देखकर भयभीत हो गई, “सर अब तो कुछ करना ही पड़ेगा। एक ओझा मेरी पहचान का है।”  “कुछ भी करो परंतु  यह समाचार प्रेस में नहीं जाना  चाहिए… पी ए साहब का फोन भी आने वाला होगा । घबराहट के कारण मेरे पेट में गुड गुड होने लगी है।मैं तो दो दिन की सिक- लीव लेकर मैं घर जा रहा हूं। कविता जी ,आप निर्णय तैयार करने वाले एक्सपर्ट की डिटेल लेकर अवॉर्ड की लिस्ट तैयार कर लेना… और हां वह ओझा वाला उपाय भी करले” ,समझाते हुए लाल पांडे ऑफिस से बाहर आ गए ।

दोपहर को कविता मैम का फोन आया ,”सर एक ओझा को कार्यालय में बुलाया है…।”

 “पहले यह बताओ पी ए साहब का फोन तो नहीं आया…?”

 “जी नहीं। मेरे रहते आप चिंता ना करें…”। 

“कविता जी पत्नी गुजर जाने के बाद आपका ही सहारा है, अब बताइए ओझा जी क्या कहते हैं?” दबी आवाज में कविता मैंम ने समझाया, “सर वह कहता है हमारे ऑफिस पर किसी असंतुष्ट, स्वर्गीय साहित्यकार के भूत का साया है…”। 

“कविता जी, इनसे ऐसा उपाय पूछो जिसका तुरंत प्रभाव पड़ जाए”। “मैंने पूछा है सर ओझा जी का कहना है कोई असंतुष्ट साहित्यकार ,जो जाने अनजाने पुरस्कार मिलने से वंचित रह गया हो और उसकी अकाल मृत्यु हो गई हो… उसकी पहचान करिए ,तब इलाज किया जा सकता है”।

“साहित्यकार… असंतुष्ट… अकालमृत्यु ,” बुदबुदाते हुए कई चेहरे उनकी आंखों में घूमने लगे। “कविता जी आप तो मुझसे भी पुरानी है ।आप ही कुछ रास्ता निकालिए, अन्यथा मैं तो लंबा बीमार पड़ जाऊंगा।” “आप चिंता ना करें सर ,मैं कुछ करती हूं” ।

लाल पांडे जी को आज अनुभव हुआ  कि औरतों में पुरुष से अधिक हौसला होता है । मोबाइल बंद होने के बाद घर और ऑफिस दोनों में चिंतन -मनन होने लगा।          

एक घंटे बाद मैम कविता ने फोन आया ,”सर मुझे याद आता है कई वर्ष पहले हमने कहानी प्रतियोगिता कराई थी। जिसमें तीन निर्णायक थे। विशेषज्ञों के निर्णय से अलग हमने राजनीतिक दबाव के कारण अलग निर्णय घोषित करना पड़ा था। हमारे ऑफिस के एक सस्पेंड चपरासी ने विशेषज्ञों वाला सही निर्णय चोरी करके अखबार में भेज दिया ।तब अकादमी की खूब फजीहत हुई थी । निर्णायक मंडल ने जिस लेखक का नाम प्रथम घोषित किया था, समाचार पत्र में पढ़कर उनको सदमा बैठ गया और कुछ ही दिनों बाद  हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई थी ।ओझा जी कहते हैं शत-प्रतिशत यह वही व्यक्ति है इसी साहित्यकार की मुक्ति के लिए ओझा जी ने उपाय बताया है कि पुरस्कार की राशि उसकी पत्नी को भेज दें और ₹5000 ओझा जी ने अपनी फीस भी बताई है ।” 

“कर दो कविता जी तुरंत कर दो किसी प्रकार उस भूत से पिंड छुड़वाइए ,,,,ग्यारह और पांच सोलह हजार की बात है ,मैं किसी फंड में एडजस्ट करा दूंगा।”

“ठीक है सर, मैं कुछ करती हूं ।”

सायं चार बजे कविता मैम का घबराया हुआ फोन आया ,”सर पी ए साहब ने अवॉर्ड की लिस्ट मंगवाई ।मैंने आनाकानी की तो कहने लगे मैं आपके ऑफिस में आ रहा हूं । सर, आप को भी  बुलाने के लिए कहा है…।”

“अरे कविता जी आपने कहा नहीं मुझे दस्त लगे हैं। देखो, कविता जी जैसे तैसे आप संभाल लीजिए, मैं आपको दशरथ वाला एक  वचन देता हूं…आप कभी भी उसे मांग लेना…।”

 “ठीक है सर, मैं कुछ करती हूं परंतु आप अकादमी के महामहिम है ।अपने वचन को अच्छे से याद रखना।”

 रात को कविता जी ने फोन करके विस्तार से विवरण दिया। “सर, मैंने पी ए जी को सब कुछ बता दिया ।उन्हें भी यकीन हो गया कि अकादमी में कोई भूत का साया है। उन्होंने भी तुरंत समाधान करने को कहा है। आपके तुरंत स्वस्थ होने की कामना भी की है। सर, अब तो आपके दस्तों की ट्रेन को लाल झंडी दिखाई दे गई होगी … परंतु मेरा वचन याद रखना।” “वेरी गुड कविता और दिवंगत लेखक की पुरस्कार राशि का क्या किया ?”

“सर, रामचरण को भेज रखा है।”

अगले दिन लाल पांडे जी उत्साह पूर्वक अकादमी  भवन में आए ।उनके आते ही सब उनके ऑफिस में जमा हो गए। रामचरण ने उत्साह पूर्वक बताया, “सर लेखक की पत्नी भी स्वर्ग सिधार  गई थी। ओझा जी से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि पुरस्कार की माला बनाकर उनकी मजार पर चढ़ा दो। इधर मैं उन की शांति के लिए पाठ आरंभ करता हूं… हां सुबह सुबह मेरी दक्षिणा अवश्य भिजवा देना। इसलिए सर जी मैं ओझा जी की दक्षिणा देकर अभी अभी यहां आया हूं ।”

“शाबाश रामचरण,” निदेशक महोदय निश्चिंत से हो गए। 

तभी पी ए साहब का फोन आ गया। कांपते हाथों से निदेशक महोदय ने फोन उठाया। “थैंक्यू लाल पांडे जी, आपने ऑफिस खुलने से पहले ही अवॉर्ड की लिस्ट मुख्यमंत्री की टेबल पर रखवा दी… थैंक यू अगेन…।”

 ‘यह किसी कर्मचारी का कार्य है या ओझा का चमत्कार’-आश्चर्य और खुशी के कारण निदेशक महोदय का मुंह खुला का खुला रह गया । उनके चारों ओर खड़े कर्मचारी कुछ भी समझ न पाए कि हमारे निदेशक महोदय को अचानक यह क्या हो गया है।

© डॉ मधुकांत 

सम्पर्क – 211 एल, मॉडल टाउन, डबल पार्क, रोहतक ,हरियाणा 124001

मो 9896667714  ईमेल [email protected]

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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