श्री शांतिलाल जैन
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं।
आज प्रस्तुत है श्री शांतिलाल जैन जी का नया शोधपूर्ण आलेख “छीजते मूल्य समय में विनम्र भावबोध की मनुहारवादी कविताएँ”। मैं श्री शांतिलाल जैन जी का आभारी हूँ जिन्होने हिन्दी साहित्य के उस पक्ष को पाठकों के सामने रखने का प्रयास किया जिसे हिन्दी साहित्य के आलोचकों ने अपने परिवार की विवाह /आमंत्रण पत्रिकाओं में तो किया होगा किन्तु, उसका मूल्यांकन करने से कतराते रहे हैं। आदरणीय श्री शांतिलाल जैन जी ने इस आलेख के माध्यम से “मनुहारवादी कविताओं “को साहित्य में यथेष्ट स्थान दिलाने का सार्थक प्रयास किया है। हम भविष्य में श्री शांतिलाल जैन जी से ऐसी ही उत्कृष्ट रचनाओं की अपेक्षा रखते हैं। )
☆☆ छीजते मूल्य समय में विनम्र भावबोध की मनुहारवादी कविताएँ ☆☆
सद्य प्रकाशित काव्य संग्रह ‘हल्दी है चन्दन है रिश्तों का बंधन है’ हिन्दी के वरेण्य कवि श्री ज्वालाप्रसाद ‘आँसू’ का पाँचवाँ काव्य संग्रह है. हिन्दी कविताओं में मनुहारवादी कविताओं के युग का प्रारम्भ श्री ‘आँसू’ की कविताओं से ही माना जाता हैं. समीक्षित संग्रह की कविताएँ समय समय पर विवाह पत्रिकाओं पर प्रकाशित हुई हैं और अब वे काव्य संग्रह के रूप में संकलित की गईं हैं. श्री ‘आँसू’ जब राजा की मंडी, आगरा के छापाखानों में कम्पोजीटर थे तभी से विवाह पत्रिकाओं पर प्रकाशन के निमित्त कविताएँ रचते रहे हैं. काव्य लोक में श्री आँसू का पदार्पण अकस्मात ही हुआ. संग्रह की भूमिका में वे लिखते हैं कि एक बार एक ग्राहक, श्री रजत श्रीवास्तव, की विवाह पत्रिका की सामग्री कम्पोज़ करते हुये उनके मन में एक पंक्ति ने जन्म लिया, फिर उन्होनें दूसरी रची और ग्राहक के ऑर्डर के बगैर ही प्रूफ में डाल दी.
करबद्ध भाव विभोर कर रहे मनुहार!
रजत यामिनी की शादी में आना सपरिवार!!
उनका यह प्रयोग सफल रहा, ग्राहक ने पंक्तियाँ बेहद पसंद कीं. बस, उसके बाद से श्री आँसू ने काव्य पथ पर पीछे मुड़ कर नहीं देखा. प्रारम्भिक दौर में उनकी लिखी गई ये पंक्तियाँ सार्वकालिक रचना मानी जाती है –
भेज रहे है स्नेह निमत्रण प्रियवर तुम्हे बुलाने को!
हे मानस के राजहंस तुम भूल ना जाने आने को!!
आपकी कविताओं में,भारतीय पुरुषों के जीवन की सबसे बड़ी मनोकामना, विवाह का शुभअवसर उपस्थित होने पर अतिथियों को आमंत्रित किये जाने की उद्दाम भावनाओं की झलक मिलती हैं.
नये बंधन हैं, पावन संगम है!
हम प्रतीक्षा में हैं, आपका अभिनंदन है!!
दिनोंदिन छीजते मूल्यों के समय में विनम्र भावबोध की ये कवितायें हमें आश्वस्त करती चलती है कि अभी सब खत्म नहीं हुआ है. श्री आँसू अपनी कविताओं में मेटाफर सहजता से रचते चलते हैं. एक कविता में वे कहते हैं –
फलक से चांद उतरेगा तारे मुस्कुराएंगे!
हमें खुशी तब होगी जब आप हमारी शादी में आएंगे!!
श्री आँसू खूबसूरती से कविता में चाँद को उतारते चलते हैं. माना कि विवाह अगहन मास में कृष्ण पक्ष की तेरस को तय हुआ है, मगर मेजबान कान्फिडेंट है कि उस दिन आसमान से चाँद उतरेगा. उतरेगा क्या श्रीमान, चंद्रयान-2 की वापसी में उसे साथ में लेता आयेगा. ये तारे जो आकाश में सूमड़े जैसे विचरते रहते हैं, उन्होनें भी प्रोमिस किया है कि वे उस दिन जरूर मुस्कराएँगे. खास कर शाम सात बजे से आपके आगमन तक तो मुस्कराएंगे ही. लेकिन, मेजबान इतने भर से संतुष्ट नहीं है – वो आपके आने पर ही खुश होगा. इस तरह का मेटाफर श्री आँसू ही रच सकते हैं. श्री आँसू की कविताओं में सबसे सशक्त स्वर की अभिव्यक्ति बच्चों से मुखरित होती है.
नन्हे नन्हे पांव हमारे कैसे आयेँ बुलाने को!
मेरे चाचा की शादी में भूल न जाना आने को!!
एक बालमन की उद्दात्त भावना में कवि ने बालक की चलकर न आ पाने की विवशता को गूँथकर रूपक रचा है. वे अपनी कविताओं में पाठकों के लिये स्पेस छोडते चलते हैं,उक्त दो पंक्तियों में अंतर्निहित है कि रिसेप्शन के दिन तक सारस्वतारिष्ट का नियमित सेवन करें,मगर भूलें नहीं. यहाँ उनके उकेरे बगैर भी डाबर की सारस्वतारिष्ट का बिम्ब उभरता है. एक विपरीत समय में जब आरएसी भी अवेलेबल नहीं हो, मोबाइल ऐप कनफर्म होने की संभावना फॉर्टी टू परसेंट बता रहा हो, तब श्री आँसू अबोध शिशु के माध्यम से कहलाते हैं-
हल्दी है चन्दन है रिश्तों का बंधन है!
हमारे मामा की शादी में आपका अभिनन्दन है!!
इतनी मनुहार के बाद तो मेहमान को जनरल डिब्बे में बैठकर भी आना ही पड़ेगा. वे कहते हैं –
क्या करिश्मा है कुदरत का कि कौन किसके करीब होता है!
शादी उसी से होती है जो जिसका नसीब होता है!!
इन कविताओं का स्वर भाग्यवादी नहीं है लेकिन ये नियति के निर्णय के सर्वोपरि होने का एहसास कराती हैं. कुछ लोगों के केस में शादी का नसीब एक से अधिक बार जागता है, श्री आँसू की कविताएँ यहाँ किसी तरह का डिसक्रिमिनेशन नहीं करती, वे दूसरी, तीसरी या चौथी शादी में भी इसी शिद्दत से आमंत्रित करती हैं। श्री आँसू का कविकर्म पाठक को सोचने पर विवश करता है कि अगले की जन्मपत्रिका में विवाह का जोग बना है और आप हैं कि दफ्तर से छुट्टी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे.
ना ड्यूटी ना दफ्तर ना ही कोई बहाना होगा !
हमारे चाचू की शादी में जलूल जलूल आना होगा !!
सशक्त बुलावे की एक कविता में श्री आँसू लिखते हैं –
आते हैं जिस भाव से भक्तों के भगवान !
उसी भाव से आप भी दर्शन दें श्रीमान !!
और इससे अधिक कह पाने का सामर्थ्य अन्य किसी मनुहारवादी कवि के यहाँ दिखाई नहीं पड़ता. इन कविताओं में समकालीन समय में आ रहे बदलावों की झलक भी मिलती है, एक अंश देखिये –
ढोल ताशे हुए पुराने डीजे का ज़माना है !
चाचू की शादी में जलूल जलूल आना है !!
श्री आँसू अपनी कविताओं में भाषा की शुद्धता के आग्रही नहीं रहे हैं. ये कवितायें मानस के राजहंस में जहाँ हिन्दी के शुद्ध रूप का दर्शन होता है वहीं बाद की कविताओं में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग समय के अनुरूप किया गया है, ये पंक्तियाँ देखिये –
कोल्डड्रिंक पियेंगे पॉपकोर्न खायेंगे!
बुआ की मैरिज़ में धूम मचाएंगे!!
श्री आँसू की कविताओं के मर्म तक पहुँचने के लिए पाठक को हिन्दी साहित्य का विद्यार्थी होना जरूरी नहीं है. उनकी कविता का स्वर पाठक को सीधे कनेक्ट करनेवाला स्वर है, जैसे –
ख्वाब में आयेंगे मैसिज़ की तरह दिल में बस जायेंगे रिंगटोन की तरह !
खुशियाँ कम ना होगी बेलेंस की तरह,
हमारी मौसी की शादी में बिजी ना होना नेटवर्क की तरह!!
और इन कविताओं में मेहमान के लिए हिदायतें भी हैं –
लिफाफे में पुराने नोट ना फ़साना!
हमारी मौसी की शादी में जलूल जलूल आना!!
श्री आँसू की कविताओं के शिल्प में पर्याप्त लोच दिखाई पड़ता है. प्रसंगवश उनमें मौसी, चाचा, बुआ किसी का भी प्रयोग किया जा सकता है. इससे न तो कविता के सौंदर्य पर न ही भावबोध में कोई अन्तर आता है. संग्रह की कविताओं में प्रत्येक पंक्ति की पीछे विस्मयादिबोधक चिन्ह लगाये गये हैं. पहली पंक्ति रच लिये जाने पर कवि को एक बार और दूसरी पंक्ति रच लिये जाने पर दो बार विस्मय होता है. कवि का स्वयं पर विस्मित होना उचित ही जान पड़ता है. बहरहाल, हिन्दी साहित्य के उत्तर आधुनिक समय में विवाह पत्रिकाओं में सिरजता काव्य आलोचकों की दृष्टि में अब भी अनदेखा ही है जबकि कितना कुछ विस्मयादिबोधक रचा जा रहा है. श्री आँसू हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर मनुहारशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व हैं, उनकी अनदेखी अफसोसजनक है. आज हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य आलोचक स्वयं ही आलोचना के केंद्र में हैं तो उसकी वजहें जेनुईन हैं. उन्होनें अपने पसंदीदावाद को प्रोत्साहित करने के फेर में मनुहारवादी उम्दा कविताओं और उनके कवियों की उपेक्षा की है. आलोचक भय, भूख, अधिकारों की कविताओं पर वक्त जाया कर रहे हैं जबकि श्री आँसू की कविताएँ भूख के खिलाफ आश्वस्ति पैदा करती हैं कि –
पूडी खा के रसगुल्ले खा के कॉफ़ी पी के जाना जी!
मामा जी की शादी में पक्का पक्का आना जी!!
हिन्दी कविता संसार को आगे भी श्री आँसू से विवाह पत्रिकाओं में नव-सृजन की प्रतीक्षा रहेगी,भले वे व्हाट्सअप पर घूमनेवाली डिजिटल पत्रिकाओं पर ही प्रकाशित क्यों न की जाएँ.
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