ई-अभिव्यक्ति -गांधी स्मृति विशेषांक-2

डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ 

 

(डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’ पूर्व प्रोफेसर (हिन्दी) क्वाङ्ग्तोंग वैदेशिक अध्ययन विश्वविद्यालय, चीन ।  वर्तमान में संरक्षक ‘दजेयोर्ग अंतर्राष्ट्रीय भाषा संस्थान’, सूरत. अपने मस्तमौला एवं बेबाक अभिव्यक्ति के लिए  प्रसिद्ध. 

 

व्यंग्य कविता – हे राम! ☆

 

हे राम!

तुम

कितने काम के थे

यह राम जानें

किसी के लिए

किसी काम के थे भी या नहीं

यह भी राम जानें

पर

तुम्हारे आशीष से

बदले हुए देश में

हम जो देखते हैं वह ये है

कि तुम्हारी एक सौ पचासवीं जयंती पर

बड़ी रौनक है/धूम है

मेले लगे हैं जगह-जगह

प्रदर्शनी में

खूब बिक रहे हैं

फैशन में भी हैं

तुम्हारी लाठी और चश्मे

जहाँ देखो

तुम्हारे बंदरों की ही नहीं

हर आंख पर तुम्हारा ही चश्मा है

हर हाथ में तुम्हारी ही लाठी

लेकिन खरीदने वालों को

इनके इस्तेमाल का पता नहीं

आयोजकों का भी नहीं है कोई स्पष्ट निर्देश

कि कब और कैसे करें इस्तेमाल

इसीलिये ‘ सूत न कपास’ फिर भी लट्ठम लट्ठा है

बाकी तो सब ठीक-ठाक है

तुम्हारे इस देश में

बस खादी के कुर्ते और टोपियाँ

‘खादी भण्डार’ के बाहर धरने पर हैं

और रेशमी धागों वाली कीमती मालाएँ

सजी हैं भीतर

तुम्हारे नाम की एक माला

हमारे गले में भी

उतनी ही शोभती है जितनी

कि तुम्हारे नाम के पेटेंट धारकों के

(तथाकथित सुधारकों के)

इसी माला को पहनकर

हम बड़े मज़े से

मुर्गा उदरस्थ कर अहिंसा पर बोलते हैं

और इस तरह आपके हृदय परिवर्तन पर

‘सत्य और अहिंसा के साथ प्रयोग’करते हैं

सुना है

पहनकर तुम्हारा गोल-गोल चश्मा और

हाथ में लाठी लेकर

कोई

माँगने वाला है

शन्ति का नोबेल पुरस्कार

तुम्हारे लिए

इसी 2अक्तूबर को

यकीन मानिये बापू!

तुम्हारी अहिंसा में बहुत दम है

तुमने बस एक बार किया था माफ़

अपने हत्यारे को

पर लाल-लाल कलंगी वाला मुर्गा

हमें रोज़ माफ़ करने हमारे घर आता है

खुद ही

‘हे राम’ कहकर अपनी खाल उतरवाता है

और हांडी में पक जाता है

अहिंसा का ऐसा उदात्त उदाहरण

क्या किसी और देश में मिल पाता है

आके देखना कभी राजघाट

अपनी नंगी आंखों से

कि जिसने किया था तुम्हारे लहू से तिलक

वही बिना नागा

हर 30 जनवरी को

तुम्हारी समाधि पर फूल चढ़ाता है।

 

©  डॉ गंगाप्रसाद शर्मा ‘गुणशेखर’

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