शरद पूर्णिमा विशेष
श्रीमति हेमलता मिश्र “मानवी “
(सुप्रसिद्ध, ओजस्वी,वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती हेमलता मिश्रा “मानवी” जी विगत ३७ वर्षों से साहित्य सेवायेँ प्रदान कर रहीं हैं एवं मंच संचालन, काव्य/नाट्य लेखन तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, कविता कहानी संग्रह निबंध संग्रह नाटक संग्रह प्रकाशित, तीन पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद, दो पुस्तकों और एक ग्रंथ का संशोधन कार्य चल रहा है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर आज प्रस्तुत है श्रीमती हेमलता मिश्रा जी की एक सामयिक रचना शरद पूनो संग – शारदीय दोहे.)
☆ शरद पूनो संग – शारदीय दोहे ☆
शरद पूनम की चंद्रिका, महकी तन मन माँह।
जुग जुग चमके चंद्रिमा, वन चंदन की छाँह।।
सोलह रुचि श्रृंगार की, रति सी सजी सजाय।
शरद पूनम की चांदनी, शीतल दाह लगाय।।
अमरित रस से है भरी, ऐ चंदा यह रात।
सौगातें सौभाग्य की, चाँदनिया से बात।।
शरद पूनम की यह निशा, बन असीस है साथ।
हर सिद्धि गुरुता मिले, चढ़े नहीं पर माथ।।
शरद जुन्हाई हे सखि, तन मन प्रीत जगाय।
जब लों घर में पी नहीं, बैरन मोहे न सुहाय।।
कान्हा राधा रास रंग, गोपी ग्वाल सुहाय।
शरद पूर्णिमा रात मन, राधाश्याम हो जाय।।
© हेमलता मिश्र “मानवी ”
नागपुर, महाराष्ट्र