मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना

डॉ कुंवर प्रेमिल

(डॉ कुंवर प्रेमिल जी  जी को  विगत 50 वर्षों  से लघुकथा, कहानी, व्यंग्य में लगातार लेखन का अनुभव हैं। अब तक दस पुस्तकें प्रकाशित। 2009 से प्रतिनिधि लघुकथाएं (वार्षिक) का सम्पादन एवं ककुभ पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन। वरिष्ठतम नागरिकों ने उम्र के इस पड़ाव पर आने तक कई महामारियों से स्वयं की पीढ़ी  एवं आने वाली पीढ़ियों को बचाकर वर्तमान तक का लम्बा सफर तय किया है। आज प्रस्तुत है  उनके संस्मरण पर आधारित रचना “भाग रहा कोरोना”. उनके दीर्घ जीवन के एक संस्मरण  की स्मृतियाँ जो हमें याद दिलाती है  कि हम जीवन में कैसे-कैसे अनुभवों से गुजरते हैं।)

☆ संस्मरणात्मक आलेख  – भाग रहा कोरोना ☆  

सत्तर के दशक में ओडीसा राज्य में सरवे हेतु गया था. वहां का घना जंगल देख कर भय लगता था, बड़े बड़े अजगर, शेर, भालू, कदम-कदम पर मिलते थे, जान जोखिम में रहती थी,

हम लोग दिन भर जंगलों में काम करते थे, थक हार कर कैंप में लौटते तो हाथी दल से सामना हो जाता,  गाँव वालों के साथ टीन टप्पर बजाकर हाथियों को भगाया जाता,  भागते हाथियों को देख कर तालियां बजाते,

वैसा का वैसा दृश्य बाइस मार्च को देखने मिला, पूरा शहर घंटा-घडियाल, शंख बजा रहा था ऐसा लगता था जैसे हम लोग कोरोना को भगा रहे थे, और कोरोना सिर पर पैर रख कर भाग रहा था,

भागते हाथियों का संस्मरण भागते कोरोना से जोड़ कर मैं आशान्वित हो रहा था. आप भी हों. आशा से आसमान जो टंगा है.

यह संस्मरण सांकेतिक है किन्तु, इस आशा के पीछे छुपा है स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस एवं प्रशासनिक कार्य में जुटे हुए उन लाखों भारतीय नागरिकों का सतत निःस्वार्थ भाव से किया जा रहा कार्य जो हमें इस अदृश्य शत्रु से लड़ने में सहयोग दे रहे हैं।  घंटे घड़ियाल, शंख, थाली और तालियों से उन सबको नमन।

 

© डॉ कुँवर प्रेमिल
एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782

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डॉ भावना शुक्ल

वाह बढ़िया