मानवीय एवं राष्ट्रीय हित में रचित रचना
डॉ कुंवर प्रेमिल
☆ संस्मरणात्मक आलेख – पूरा हिन्दुस्तान जगमगाया ☆
श्रीराम जी जब लंका दहन कर लौटे तब पूरा अयोध्या जगमग जगमग कर रहा था. दीपोत्सव था वह. अयोध्या के अस्तित्व का सवाल था वह.
अभी अभी पांच अपरैल को पूरा हिन्दुस्तान जगमग जगमग हुआ था. महादीपोत्सव था यह. हमारे देश के अस्तित्व का सवाल था यह भी.
कोरोना अपने दहशत के भयंकर दाईने डैने फैलाकर हमें डरा रहा था. विदेशों में इटली, जापान, अमेरिका, के इरादों को कुचलता हुआ आगे बढकर वह भारत में भी अपने भयंकर डैने फैलाना चाहता था.
कोरोना भूल गया था कि यहाँ सवा करोड़ जनता का राज है. ऐसॆ मौकों पर एकजुट होना इसकी आदत में शुमार है. अजीब दृश्य था. शहर-गावं सब मिलकर दिये जला रहे थे. इन सांकेतिक दियों के पीछे देशवासी कितना सुरक्षित महसूस कर रहे थे. यह जानने-समझने कि बात है. जैसे ये दिए, दिए न होकर रक्षा करने वाले सिपाही हों, उन्हीं सिपाहियों के सम्मान में जो चौबीसों घंटे मानवता के लिए सतत सेवाएँ दे रहे हैं.
देशवासियों ने अपने अति उल्हास में फटाके भी फोड़े. दियों ने जनमानस को विश्ववास दिलाकर कहा – हमारा प्रकाश पुंज है न आप के साथ.
टीवी में से झांककर एक अनुकरणीय चेहरा बार-बार भरोसा दे रहा था कि हम हैं न आपके साथ. कही वह चेहरा हमारे दादा परदादा का तो नहीं जो प्रधानमंत्री का चेहरा लेकर आ खड़ा हुआ है. ये चेहरा अपने परिवार के मुखिया का सा क्यों लग रहा है भला?
© डॉ कुँवर प्रेमिल
एम आई जी -8, विजय नगर, जबलपुर – 482 002 मोबाइल 9301822782