श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में श्री जय प्रकाश पाण्डेय जी की एक सार्थक लघुकथा – विसर्जन । )
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 64 ☆
☆ लघुकथा – विसर्जन ☆
एक बार कबूतरों के झुंड से एक कबूतर को निकाल दिया गया, तो उस कबूतर ने एक तखत में कब्जा कर प्रवचन देने प्रारंभ कर दिए,श्रोता जुड़ते गए… अच्छा विचार विमर्श होता रहता।
जीवन में अनुशासन और मर्यादा की खूब बातें होती, फिर प्रवचन देने का काम बारी बारी से दो और कबूतर करने लगे। बढ़िया चलने लगा, तखत से नये नये प्रयोग होने लगे, और ढेर सारे कबूतर श्रोता बनके जुड़ने लगे, अनुशासन बनाए रखने की तालीम होती रहती,नये नये विषयों पर शानदार प्रवचनों से श्रोता कबूतरों को नयी दृष्टि मिलने लगी, विसंगतियों और विद्रूपताओं पर ध्यान जाने लगा।
एक कबूतरी पता नहीं कहां से आई, और सबके रोशनदान से घुसकर गुटरगू करने लगी, सबको खूब मज़ा आने लगा, प्रवचन देने वाले पहले कबूतर का ध्यान भंग हो गया, कबूतर अचानक संभावनाएं तलाशने लगा, कबूतरी महात्वाकांक्षी और अहंकारी थी, आत्ममुग्धता में अनुशासन और मर्यादा भूल जाती थी।
एक दिन प्रवचन चालू होने वाले थे तखत में प्रवचन करने वाले दोनों कबूतर बैठ चुके थे ,क्रोध में चूर कबूतरी तखत के चारों ओर उड़ने लगी, प्रवचन चालू होने के पहले बहसें होने लगीं, श्रोता कबूतरों ने कहा ये तो महा अपकुशन हो गया, शुद्ध तखत के चारों तरफ अशुद्ध कबूतरी को चक्कर नहीं लगाना था। फिर उसी रात को ऐसी आंधी आयी कि जमा जमाया तखत उड़ गया। सारे कबूतर उड़ गए, दो दिन बाद किसी ने बताया कि भीषण आंधी से तखत उड़ कर टूट गया था इसीलिए उसका विसर्जन कर दिया गया।
© जय प्रकाश पाण्डेय