श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है एक हाइबन “रतनगढ़ का हमाम”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी के हाइबन # 66 ☆
☆ रतनगढ़ का हमाम ☆
चित्तौड़गढ़ से 70 किलोमीटर पूर्व में अरावली की पहाड़ी पर तीनों ओर गहरी खाई के घुमावदार हिस्से पर रतनगढ़ का किला 11 वीं शताब्दी का बना हुआ है। इसे राजा रतनसिंह के नाम पर रतनगढ़ का किला कहते हैं। इसी से गांव का नाम रतनगढ़ पड़ा है।
यह रतनगढ़ सिंगोली तहसील जिला नीमच मध्यप्रदेश में स्थित है। पूर्व में यह जागीर ग्वालियर रियासत को इंदौर रियासत द्वारा स्थानांतरित की गई थी।
खंडहर हो चुके किले में एक अद्भुत हमाम घर है। यह हमामघर रूपी बावड़ी आज भी बनी हुई है । जिसमें 12 महीने पानी आज भी भरा रहता है । इसकी बनावट, तकनीकी व खुबसूरती से जमीन के अंदर की निर्माण कला की उत्कृष्टता का बखूबी समझा जा सकता है। जब यह बावड़ी सह हमाम घर आज के समय यह इतना बेजोड़ और उम्दा है तो उस जमाने में कैसा रहा होगा ?
प्राचीन समय में जमीन से इतनी ऊपर पहाड़ी पर इतनी जोरदार वास्तुकला की यह बावड़ी आधुनिक स्विमिंग पूल को भी मात देती है । यह ऊंची पहाड़ी पर समतल जमीन से तीन मंजिला नीचे दो भागों में विभाजित स्विमिंग पुल यानी पुराना हमामघर बहुत ही उत्कृष्ट ढंग से बनाया गया है।
इसी किले पर बड़ी-बड़ी धान भरने की गोलाकार कोठियां बनी हुई है । जिनका दीवारों पर लगा चिकना प्लास्टर आज भी विद्यमान है । कई शताब्दी बीत जाने के बाद भी यह कोठियां आज भी बेहतर हालत में विद्यमान है। इससे भारतीय कामगारों की उत्कृष्टता और गुणवत्ता युक्त सामग्री का अंदाजा लगाया जा सकता है।
रतन-गढ़~
धानकोठी में गिरा
चूहा ले सांप।
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© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
26-08-20
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