डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
( डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं। अब आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित एक सार्थक एवं विचारणीय आलेख “हिन्दु धर्म तथा देवी-देवताओं से सम्बन्धित बढ़ती अपसंस्कृति रुकना अनिवार्य“. )
☆ किसलय की कलम से # 17 ☆
☆ हिन्दु धर्म तथा देवी-देवताओं से सम्बन्धित बढ़ती अपसंस्कृति रुकना अनिवार्य ☆
अमर्यादित चुटकुले, हास्य, व्यंग्य, पैरोडी, लेखों, व हिन्दुधर्म का माखौल उड़ाने वालों पर कानूनी कार्यवाही का विधान बने। विश्व के समस्त धर्मों में मानवता को सर्वोपरि माना गया है। किसी अन्य धर्म की आलोचना करना अथवा किसी की आस्था को ठेस पहुँचाना किसी भी धर्म में नहीं लिखा। लोग अपने-अपने धर्मानुसार जीवन यापन व धर्मसम्मत पूजा,भक्ति, प्रार्थना और ध्यान कर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। विश्व के अलग-अलग देशों में किसी न किसी धर्म की बहुतायत होती ही है। उस देश के लोग वर्ष भर अपने धर्मानुसार पर्व, उत्सव, जन्मदिवस, मोक्ष दिवस आदि मनाते हुए सामाजिक जीवन खुशी-खुशी जीते हैं। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है कि उस देश के अन्य धर्मावलंबी अपना जीवन अपने अनुसार नहीं जीते। अन्य धर्मों के कार्यक्रम अथवा पर्वों में जनाधिक्य का अभाव व यदा-कदा असहजता प्रकट होना अलग बात है, लेकिन विश्व के अधिकांश देशों में किसी को भी अपने धर्म सम्मत जीवन यापन करने की कोई रोक-टोक नहीं है। हर देश में वहाँ की परिस्थितियों, मान्यताओं, ग्रंथों एवं संस्कृति का महत्त्व होता है। प्राचीन प्रथाओं एवं रीति-रिवाजों के अनुरूप धर्म का अनुकरण भी उस धर्म के अनुयायी करते हैं। पूरे विश्व में परम्परायें एवं परिस्थितियाँ समय, दूरी व मान्यताओं के चलते भिन्न भिन्न होती हैं।
अलग-अलग धर्मों के मतानुसार एक ही बात, एक ही वस्तु या एक ही कार्य पवित्र-अपवित्र अथवा उचित-अनुचित भी हो सकते हैं। आशय यह है कि हमारे लिए जो बातें सही हैं वे अन्य धर्म के लिए असंगत भी हो सकती हैं। यही बात उनके लिए भी लागू होती है परन्तु ऐसा नहीं है कि सर्वत्र मानवता, हिंसा, बुराई, अच्छाई, अथवा घृणा के भी अलग अलग मायने हैं।
विश्व के किसी भी देश का एक सच्चा इंसान ‘सर्व धर्म समभाव’ में विश्वास रखता है। अधिकांश महापुरुषों, धर्मगुरुओं एवं विशिष्ट लोगों के विचार भी किसी अन्य धर्म की आलोचना को अनुमति नहीं देते। हर देश में 5 से 10% लोग धर्मों के बँटवारे व धर्म की राजनीति करने वाले पाए ही जाते हैं। ये वही विघ्नसंतोषी लोग हैं, जो अपने स्वार्थ अथवा थोड़ी प्रसिद्धि हेतु अपने प्रभाव व समर्थकों के साथ अन्य धर्मों के विरुद्ध विष वमन करते हैं। कुछ दिग्भ्रम व अवसरवादी लोग भी इनसे जुड़कर सद्भाव के वातावरण को दूषित करते हैं। अनेक धर्मावलंबियों से लम्बी वार्ताएँ, अध्ययन एवं विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि 5 से 10 प्रतिशत लोगों को छोड़कर शेष सभी धर्मावलंबी आपसी सद्भाव और शांति के साथ जीवन यापन कर रहे हैं।
समाज में सभी प्रेम-भाईचारे के साथ खुश रहते हैं। इन विघ्न संतोषियों के उन्माद के कारण फिजा में जरूर अल्प समय के लिए जहर घुल जाता है, लेकिन अब तक भुगत चुका आदमी इनके बहकावे में नहीं आता। वैसे भी अपवाद तो हर जगह, हर काल में रहे हैं। कभी कभी जरा सी चूक या नासमझी से ही ऐसी कुछ असहज परिस्थितियाँ कुछ दिनों के लिए निर्मित होती हैं लेकिन पुनः सामान्य स्थिति बहाल हो जाती है। कुल मिलाकर विश्व में चार-छह दशक पूर्व वाली धर्म विरोधी परिस्थितियाँ उत्पन्न होना अब नामुमकिन है।
धर्मों के प्रति घृणा और कम-ज्यादा महत्त्व की बातें अब ज्यादा दिखाई व सुनाई नहीं देती, लेकिन पिछले कुछ दशकों से एक ऐसे वर्ग में निरंतर वृद्धि हो रही है जो हिंदू धर्म का माखौल उड़ाने से पीछे नहीं हटता। लोक-परलोक, पाप-पुण्य और आस्थाभाव से परे ये लोग लगातार अपने कुकृत्यों और कुतर्कों से हिंदू धर्म की मर्यादा को कलंकित करने पर तुले हुए हैं।
माना कि हर आदमी गलत नहीं होता परन्तु हर वर्ग में कुछ ऐसे अप्रिय लोग जरूर पाए जाते हैं। चित्रकारों एवं कार्टूनिस्टों में ऐसे बहुत से लोग पाए जाते हैं जो अपनी तूलिका से हिन्दु देवी-देवताओं के अमर्यादित व अभद्र चित्रों को उकेरकर हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करते रहते हैं। कुछ कलाकारों द्वारा विभिन्न पर्वों पर दुर्गा, गणेश, होलिका की मूर्तियों सहित विभिन्न झाँकियों में भी धार्मिक मर्यादाओं को ताक पर रखकर धर्मविरुद्ध मूर्तियाँ एवं आकृतियाँ दर्शन हेतु तैयार करते हैं, जबकि धर्म के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ अथवा असंगत दखल कदापि स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। समाज के प्रबुद्ध जनों को ऐसे अनुचित कृत्यों पर हस्तक्षेप हेतु आगे आना चाहिए। माना ऐसे चित्रों से सामान्य लोगों में कौतूहल उत्पन्न तो होता है लेकिन ऐसी कुछ परिपाटियाँ भी जन्म लेती हैं जो धर्मपरायण नहीं हैं।
वर्ष भर हिन्दुओं के धार्मिक पर्वों के चलते प्रमुख रूप से दशहरा एवं गणेश उत्सव के संदर्भ में देखा गया है कि ये दोनों पर्व दस-ग्यारह दिन लगातार चलते हैं। अखबारों में इन्हीं देवी-देवताओं के सुसज्जित चित्रों का प्रकाशन होता है। खास तौर पर अनंत चतुर्दशी, दुर्गाष्टमी नवमी एवं विजयादशमी पर प्रतिदिन खाद्य पदार्थों को पैक करने में, बिछाकर बैठने के अतिरिक्त सामान्य जनता अन्य तरह से उपयोग कर इन्हीं अखबारों के पन्नों को रास्ते में ही फेंक देते हैं और लोग अधिकतर इन्हें पैरों तले कुचलते रहते हैं। इस पर भी सामग्री विक्रेताओं व उपयोगकर्ताओं को ध्यान देना होगा। लोग अखबारों के इन सचित्र परिशिष्टों को अलग कर अपने पास रख सकते हैं अथवा पवित्र जगहों पर विसर्जित भी कर सकते हैं।
इसके बाद देखा गया है कि कुछ कट्टरपंथी अपने प्रवचनों और धार्मिक आयोजनों में अन्य धर्मों की आलोचना कर श्रोताओं को दिग्भ्रमित करते हैं। साहित्य क्षेत्र के कुछ लोग भी विकृत मानसिकता को अपनी लेखनी के माध्यम उजागर करते हैं। उनके गद्य-पद्यों में किसी न किसी रूप से हिन्दु धर्म पर बुरी नीयत से कटाक्ष और व्यंग्य कसे जाते हैं। इसी वर्ग का दूसरा हिस्सा मंचीय कवियों तथा हास्य कलाकारों का होता है। आजकल अधिकांश कवि सम्मेलन स्वस्थ मनोरंजन और प्रेरक काव्य के स्थान पर ओछे व्यंग्यों, चुटकुलों एवं हास्य की बातों के मंच बन गए हैं। इन मंचों से कविता की चार पंक्तियाँ सुनने के लिए कान तरस जाते हैं। चार पंक्तियों के लिए आपको कम से कम बीस-तीस मिनट तक इनके फूहड़ चुटकुले अथवा बकवास झेलना पड़ती है। इन सब में सबसे गंभीर और विकृत परिस्थितियाँ यही तथाकथित हास्य कवि तथा हास्य कलाकार निर्मित करते हैं। इनका प्रमुख उद्देश्य यही रहता है कि फूहड़ और ओछी बातों से जनता का मनोरंजन किया जा सके। ये हमारे ही धर्म के असभ्य लोग हैं जो अपने ही देवी-देवताओं को लेकर ऐसी बातें करते हैं, जिससे हर सच्चे हिन्दु की आत्मा आहत हो जाती है। भला ये कैसे हिन्दु हैं जो चार पैसों और अपनी अल्प प्रसिद्धि के लिए अपने ही धर्म की मान-मर्यादा को भी दाँव पर लगाते हैं। देश के विभिन्न मंचों, टी.वी. सीरियलों एवं अपने यूट्यूब चैनलों, अपनी वेबसाइट्स, अपने एल्बमों द्वारा हिन्दुधर्म और इसमें समाहित आस्था की धज्जियाँ उड़ाते हैं। हिन्दु कलाकारों को जब अपने ही धर्म की खिल्ली उड़ाने में डर नहीं लगता तब देश के दूसरे धर्मावलम्बी कलाकारों को डर क्यों लगने लगा। हिन्दु धर्मावलंबियों के अतिरिक्त ऐसी सहिष्णुता अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देती। वैसे भी अन्य धर्मों में सख्ती के चलते ये सब सम्भव ही नहीं है। मंच, ऑडियो, वीडियो और उनकी पुस्तकों में लिखित साक्ष्यों एवं हिन्दुधर्म को अपमानित करने पर बहुत कम लोगों ही दण्डित हुए होंगे। हिन्दुधर्म पर अमर्यादित चुटकुले, हास्य, व्यंग्य, पैरोडी, लेखों, व हिन्दुधर्म का माखौल उड़ाने वालों पर कानूनी कार्यवाही का विधान बनना आवश्यक होता जा रहा है। जनहित याचिकाएँ एवं यदा-कदा न्यायालय के संज्ञान में आने पर भी स्वमेव कार्यवाही होते देखी गई हैं। क्या ऐसे ही किसी तरह से इन गतिविधियों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती। इन कृत्यों पर देश के तथाकथित कर्णधारों, धार्मिक संगठनों और जन सामान्य द्वारा भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। आखिर ऐसी जागरूकता एवं समझदारी लोगों में कब आएगी। गहन चिंतन करने पर यह पता चलता है कि अन्य धर्मों की अपेक्षा हिन्दुधर्म के देवी-देवताओं और ग्रंथों में लिखे गए विषयों और प्रसंगों पर कुछ ज्यादा ही कुतर्क किए जाते हैं लेकिन यह बात भी दृढ़ता से कही जा सकता है कि हिन्दुधर्म व हिन्दु धार्मिक ग्रंथों के सतही अध्ययन व अपूर्ण उद्देश्यप्रधान जानकारी के अभाव में ही ये सब अल्पज्ञ लोग घटिया तर्कों का सहारा लेकर हमारे धर्म पर कीचड़ उछलते हैं।
हम सभी जानते हैं कि हर चीज व हर बातें समय, स्थान व परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती हैं। तुलसीदास जी, बाल्मीकि जी, वेदव्यास जी सहित ऐसे अनेक प्रकांड हिन्दु विद्वानों द्वारा ग्रंथों में लिखी गईं एक एक बात तात्कालिक दृष्टि से शत प्रतिशत सही है। आज भी कुछ ऐसे लोग व जातियाँ हैं, जिनके पूर्वज स्वयं उन्हीं नामों से स्वयं का परिचय देते थे परंतु आज उन्हीं शब्दों के संबोधन असंगत या बुरे लगते हैं। तब उन बातों को हम उसी समय के लिए ही छोड़ देना श्रेयस्कर क्यों नहीं मानते। क्या विरोध करने से ग्रंथों के भी शब्द बदल जाएँगे। क्या मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के नाम पुरानी पुस्तकों या अभिलेखों से हटा सकते हैं। नहीं न। फिर कुछ ऐसी ही सरल-सहज पढ़ी-लिखी गईं विगत धार्मिक और सामाजिक बातों की आड़ में विषवमन क्यों किया जाता है। इन पर अमर्यादित धार्मिक अभिव्यक्ति कतई न्याय संगत नहीं है। देश में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो हिन्दु होते हुए भी अपने ही धार्मिक ग्रंथों और देवी-देवताओं पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ लेकर कीचड़ उछालते रहते हैं। लोग यह भूल जाते हैं कि एक सीमा के बाद गलत अभिव्यक्ति भी आपराधिक कृत्य माना जा सकता है।
देवी देवताओं के नामों पर असंगत दुकानों, उपयोगी वस्तुओं, सेवाओं के साथ इनका नाम नहीं जोड़ा जाना चाहिए। जूते, चप्पल, मांस-मदिरा के उत्पादों पर धार्मिक चित्रों के उपयोग पर प्रतिबंध होना चाहिए। धर्म, देवी-देवताओं, ग्रंथों आदि पर कटाक्ष तथा माखौल उड़ाने पर ऐसे लोगों की निंदा एवं बहिष्कार जैसे कदम उठाए जाना चाहिए।
हिन्दु धर्म तथा देवी-देवताओं से सम्बन्धित बढ़ती अपसंस्कृति का यह एक बेहद संवेदनशील विषय है। इस पर हिंदुओं सहित हर धर्म के लोगों को भी सोचना होगा कि हम ऐसे कोई कार्य न करें, जिससे किसी भी धर्म की भावनाओं को ठेस पहुँचे। धर्म लोगों के जीवन का अभिन्न अंग होता है। धर्म पथ पर चलने के आचार एवं व्यवहार हमें विरासत में मिलते हैं। आस्था हमारे हृदय में बसी होती है। धर्म व धर्मावलंबी होने के अस्तित्व परस्पर पूरक होते हैं। इसलिए इनकी मान-मर्यादा एवं सम्मान को बनाए रखना हम सबका दायित्व है।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
आलेख प्रकाशन हेतु आभार
आदरणीय अग्रज बावनकर जी।
?????