प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक भावप्रवण कविता कभी अनचाहा जो जाता है । हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 11 ☆
☆ कभी अनचाहा जो जाता है ☆
जीवन की राहों में देखा ऐसे भी कभी दिन आते है
जिन्हें याद न रखना चाहते भी हम भूल कभी न पाते है।
होते हैं अनेकों गीत कि जिनके अर्थ समझ कम आते है
पर बिन समझे अनजाने ही वे फिर फिर गाये जाते है
छा जाते नजारे नयनों में कई वे जो कहे न जाते हैं
पर मन की ऑखो के आगे से वे दूर नहीं हो पाते है।
सुनकर या पढ़कर बातें कई सहसा आँसू भर आते हैं
मन धीरज धरने को कहता पर नयन बरस ही जाते हैं
अच्छी या बुरी घटनायें कई सहसा ही हो यों जाती हैं
जो घट जाती हैं पल भर में पर घाव बडे कर जाती हैं
सुंदर मनमोहक दृष्य कभी मन को ऐसा भा जाते हैं
जिन्हें फिर देखना चाहें पर वे फिर न कभी भी आते हैं
घटनायें कभी सहसा घट कर इतिहास नया रच जाती है
गलती तो करता एक कोई पर सबको सदा रूलाती है।
भारत बटवारें की घटना ऐसी ही एक पुरानी है
जो चाहे जब पुस्तक से निकल बन जाती नई कहानी है
परिवार में घर का बटवारा कभी भी न भुलाया जाता है
वह स्वप्न जो यह करवाता है पूरा न कभी हो पाता है
इतिहास कई घटनाओं को यों बढ़ चढ़ के बतलाता है
सुनने वालों के आगे जिससे खौफ खड़ा हे जाता है।
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈