(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक विचारणीय व्यंग्य बिजली बैरन भई। इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 74 ☆
☆ व्यंग्य – बिजली बैरन भई ☆
ज्यादा नहीं कोई पचास सौ बरस पुरानी बात है, तब आज की तरह घर-घर बिजली नहीं थी, कितना आनंद था। उन दिनों डिनर नहीं होता था, ब्यारी होती थी। शाम होते ही लोग घरों में लौट आते थे। संध्या पूजन वगैरह करते थे, खाना खाते थे। गांव – चौपाल में लोक गीत, रामायण भजन आदि गाये जाते थे। ढबरी,लालटेन या बहुत हुआ तो पैट्रोमैक्स के प्रकाश में सारे आयोजन होते थे।
दिया बत्ती करते ही लोग जय राम जी की करते थे। राजा महाराओं के यहां झाड़ फानूस से रोशनी जरूर होती थी। और उसमें नाच गाने का रास रंग होता था, महफिलें सजती थी। लोग मच्छरदानी लगा कर चैन की नींद लेते थे और भोर भये मुर्गे की बांग के साथ उठ जाते थे, बिस्तर गोल और खटिया आड़ी कर दी जाती थी।
फिर आई ये बैरन बिजली, जिसने सारी जीवन शैली ही बदल कर रख दी। अब तो जैसे दिन वैसी रात। रात होती ही नहीं, तो तामसी वृत्तियां दिन पर हावी होती जा रही है। शुरू-शुरू में तो बिजली केवल रोशनी के लिए ही उपयोग में आती थी,फिर उसका उपयोग सुख साधनों को चलाने में होने लगा, ठंडक के लिये घड़े की
जगह फ्रीज ने ले ली। वाटर हीटर, रूम हीटर उपलब्ध हो गए। धोबी की जगह वाश मशीन आ गई । जनता के लिये शील अश्लील चैनल लिये चौबीसो घंटे चलने वाला टीवी वगैरह हाजिर है। कम्प्यूटर युग है। घड़ी में रोज सुबह चाबी देनी पड़ती थी, वह बात तो आज के बच्चे जानते भी नहीं आज जीवन के लिये हवा पानी सूरज की रोशनी की तरह बिजली अनिवार्य बन चुकी है। कुछ राजनेताओं ने खुले हाथों बिजली लुटाई, और उसी सब का दुष्परिणाम है कि आज बिजली बैरन बन गई है।
बिजली है, और उसके चाहने वाले ज्यादा, परिणाम यह है कि वह चाहे जब चली जाती है, और हम अनायास अपंग से बन जाते हैं, सारे काम रूक जाते हैं, इन दिनों बिजली से ज्यादा तेज झटका लगता है- बिजली का बिल देखकर। जिस तरह पुलिसवालों को लेकर लोकोक्तियॉं प्रचलन में है कि पुलिस वालों से दोस्ती अच्छी है न दुश्मनी। ठीक उसी तरह जल्दी ही बिजली विभाग के लोगों के लिए भी कहावतें बन गई हैं।
बिजली के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि इसे कहीं भरकर नहीं रखा जा सकता, जैसे पानी को टंकी में रखा जा सकता है। किंतु समय ने इसका भी समाधान खोज निकाला है, और जल्दी ही पावर कार्डस हमारे सामने आ जायेंगे। तब इन पावर कार्ड्स के जरिये, बिजली का पेमेंट हो सकेगा, वही कल के प्रति आश्वस्ति के लिये लोग ठीक उसी तरह ढेरों पावर कार्ड खरीद कर बटोर सकेंगे
जैसे आज कई गैस सिलेंडर रखे जाते है। सोचिये ब्लैकनेस को दूर करने वाली बिजली को भी ब्लैक करने का तरीका ढूंढ निकालने वाले ऐसे प्रतिभावान का हमें किस तरह सम्मान करना चाहिए।
बिजली को नाप जोख को लेकर इलैक्ट्रोनिक मीटर की खरीद और उनके लगाये जाने तक, घर-घर से लेकर विधानसभा तक, खूब धमाके हुये। दो कदम आगे, एक कदम पीछे की खूब कदम ताल हुई और जारी है। सौभाग्य योजना कई के लिए दुर्भाग्य बन रही है, बिल वसूली टेढ़ी खीर होती जा रही है, बिजली के वोट में बदलने के गुर नेता जी सीख गए हैं। निजीकरण के नाम पर बिजली घर सारा, इंफ्रास्ट्रक्चर बेच वंशी बजाने के मूड में सरकार है। कर्मचारियों की आवाज आ रही है। बिजली बैरन भई। ग्रिड फेल हो रहा है, बेहाल जनता चिल्ला रही है बिजली बैरन भई
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८
मो ७०००३७५७९८
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈