श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “मोहरे”। खेल चाहे जिंदगी का हो या शतरंज की बिसात, हम और हमारे आस पास मोहरे, चाल, शाह और मात विचारणीय है।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 13 ☆
☆ मोहरे ☆
मोहरों की बिसात
ही क्या है
चाहे सफेद हो या काले
खिलाड़ी जैसे चाल चलेगा
वैसे है वो दौड़ने वाले
हाथी, घोड़ा, ऊंट, प्यादा
या हो शातिर वजीर
सबकी चाल निराली है
हर चाल ऐसी मारक है
जैसे मात होने वाली है
मंझे हुए हैं सभी खिलाड़ी
मंझा हुआ है इनका खेल
एक दूसरे के चिर प्रतिद्वंद्वी
कैसे होगा इनका मेल
नई नई रणनीतियाॅ
चतुराई भरी चालें
नये नये उभरते खिलाड़ी
कोई मुगालता ना पालें
अपने अपने मोहरों से
लगे हुए हैं
देने शह और मात
रच रहे नित नए षड़यंत्र
विनाशकारी घात-प्रतिघात
अपने मोहरों पर
यह व्यर्थ का अभिमान है
शतरंज का खेल है जीवन
बेबस हर इंसान हैं
शतरंज का जो है निपुण खिलाड़ी
उसके मोहरों की
कोई समझ ना पाए चाल
वो पल भर में शह दे दे
वो पल भर में दे दे मात
© श्याम खापर्डे
18/10/2020
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