(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का नवरात्रि पर्व पर विशेष विचारणीयआलेख स्त्री सम्मान और नवरात्र । इस विचारणीय आलेख के लिए श्री विवेक रंजन जी का हार्दिकआभार। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 77 ☆
☆ नवरात्रि विशेष – स्त्री सम्मान और नवरात्र ☆
जहाँ हमारी संस्कृति में नार्याः यत्र पूज्चयनते रमन्ते तत्र देवता का उद्घोष था, दुखद स्थिति है कि आज प्रति दिन महानगरो में ही नही छोटे बड़े कस्बो गांवो तक में स्त्री के प्रति अपराधो की बाढ़ सी आ गई लगती है. एक ओर तो महिलायें देश के लिये ओलम्पिक में कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं, लड़कियां अंतरिक्ष में जा रही हें, सेना में स्थान बना रही हैं, जीवन के हर क्षेत्र में पुरुष को कड़ी प्रतियोगिता दे रही हैं तो दूसरी ओर स्त्रियो को लैंगिक भेदभाव, केवल स्त्री होने के कारण अनेक बलात अपराधो का सामना करना पड़ रहा है. कोई समाचार पत्र उठा लें, कोई चैनल चला लें नारी के प्रति पीड़ा भरी, प्रत्येक सभ्य मनुष्य को मर्माहत करने वाली खबरें देखने सुनने को मिल जाती हैं. मनोरंजन हेतु आयोजित किये जाने वाले ऑर्केस्ट्रा आदि के आयोजनो में नृत्य कला के नाम पर अश्लीलता दिनों दिन सारी सीमायें लांघ रही है. इन आयोजनो में स्त्री को केवल देह के रूप में, उपभोग की वस्तु के रूप में दिखाया-सुनाया जा रहा है. लोक नृत्य व विशेष रूप से भोजपुरी संगीत के नाम पर फूहड़ गीत धार्मिक आयोजनो का भी हिस्सा बन चुके हैं. हरियाणा के अनेक गांवो की चौपालो के मंचो पर सार्वजनिक रूप से बेहूदे डांस के आयोजन मनोरंजन व राजनैतिक दलो द्वारा भीड़ जुटाने हेतु परम्परा का हिस्सा बन रहे हैं.
अनेक अभियानों, प्रयासों और कानूनी प्रावधानों के बावजूद देश में महिलाओं के प्रति हिंसा और यौन दुराचार की घटनाएं रुक नहीं रही हैं.विडम्बना है कि डेढ़-दो साल तक की बच्चियों के साथ भी दुराचार की खबरें आती हैं. विवाह में दहेज व अल्पायु में विवाह की कुरीति पर किसी हद तक नियंत्रण हो रहा है तो दूसरी ओर अभी भी हमारी मुस्लिम बहनो के प्रति कट्टरपंथी सोच के चलते समुचित न्याय नही हो पा रहा. विज्ञापनो में नारी शरीर का उन्मुक्त प्रदर्शन, फैशन की अंधी दौड़ में स्वयं स्त्रियो द्वारा नारी स्वातंत्र्य व पुरुष से बराबरी के नाम पर दिग्भ्रमित वेषभूषा व जीवन शैली अपनाई जा रही है. सिने जगत युवा पीढ़ी का प्रबल मार्गदर्शक होता है, किन्तु देखने मिला कि आदर्शो की जगह खलनायको का महिमा मण्डन हाल की कुछ फिल्मो के माध्यम से हुआ. फिल्मी कलाकार नशे के गिरफ्त में दिखे ।
स्त्री के प्रति बढ़ती हिंसा व अपराध के अनेक कारण हैं पर सबसे प्रमुख कारण महिलाओं को केवल एक शरीर बना देना है. मीडिया, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री, बाजार सभी ही उन्हें वस्तु बनाने और उन्हें वस्तु होना समझाने में लगे हैं. महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, स्वयं स्त्री को बड़ी ही चतुराई से इसमें सहभागी बनाया जा रहा है. कानून की सरासर अवमानना करते हुये अवयस्क किशोर भी ऐसे मनोरंजन के आयोजनो में शामिल होते हैं जिनमें स्त्री को बेहूदे नृत्यो के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. इस सबका नव किशोरो के कोमल मन पर जो मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है उसी का दुष्परिणाम है कि निर्भया जैसे प्रकरणो में किशोर बच्चे भी अपराधी की भुमिका में पाये गये हैं. ऐसी सामाजिक परिस्थिति में स्त्रियों के लिए समता-समानता के संवैधानिक संकल्प को पूरा कर पाना तो दूर की बात है, लैंगिक न्याय, लैंगिक सम्वेदीकरण आदि के सामान्य से सामान्य कार्यक्रम भी सफल नहीं हो सकते। अश्लीलता हमारी लोक संस्कृति के अपार भण्डार और सांस्कृतिक धरोहर को भी ख़त्म कर रही है।चिंतन मनन का विषय है कि अश्लीलता को बढ़ावा देनेवाले लास्य और कामुकता के बीच का, और अच्छे और बुरे कार्यक्रम के बीच का अंतर स्थापित किया जावे. स्त्री को समाज में सम्मान का स्थान तभी मिल सकेगा जब हम किशोरों में, युवाओ में लड़कियो के प्रति सम्मान की भावना के संस्कार अधिरोपित करने में सफल हो सकेंगे.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈