श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “ऐ मेरे दोस्त”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 14 ☆
☆ ऐ मेरे दोस्त ☆
ऐ मेरे दोस्त
चल कहीं और चले
जहाँ झूठ, पाखंड से
लोग ना जाते हो छले
जहाँ मनमोहक सुगंध हो
समीर बह रहा मंद मंद हो
भ्रमरों की प्रणय लीला हो
मौसम बड़ा रंगीला हो
हर कली, हर फूल में
जहाँ प्यार पले
ऐ मेरे दोस्त —
जहाँ चाँद तारों की
शीतल छाँव हो
दुधिया चाँदनी में
नहाया गांव हो
ताजमहल सा अनूठा पन हो
दो आत्माओं का
पुनर्मिलन हो
शीतल चांदनी में
प्रेम की दिवानगी में
जहाँ दो जिस्म ढले
ऐ मेरे दोस्त–
जहाँ भूख और प्यास बसती हो
जिंदगी मौत से भी सस्ती हो
दर्द, पीड़ा, बेकारी से त्रस्त हो
फिर भी अपनी
गरीबी में मस्त हो
दिलों में ना हो छल कपट
बस जहाँ हृदय में
सत्य की ज्योत जले
ऐ मेरे दोस्त–
दोस्त,
तू मुझे भगवान ना बना
इन्सान ही रहने दें
जमाने के दिये घाव
हसके सहने दे
लोग कहते है दीवाना
तो कहने दे
दया, करूणा, प्रेम का झरना
यूँ ही बहने दे
क्या खोया, क्या पाया
मत सोच
जहाँ अब जिंदगी की
है शाम ढले
ऐ मेरे दोस्त–
© श्याम खापर्डे
18/10/2020
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