सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “ए मैना!”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 56 ☆
आज जब देखा मैंने तुम्हें
शाख पर मस्ती में बैठे हुए
तो तुम्हें देखती ही रह गयी!
बताओ न मैना!
क्या करती हो तुम दिन ढले
जब तुमने जी भर कर मेहनत कर ली होती है
और दाने चुग लिए होते हैं?
क्या सोच रही थीं तुम यूँ शाख पर बैठ हुए?
न ही तुम्हारे पास कोई मोबाइल है
कि किसी दोस्त से बातें कर लो,
न ही तुम टेलीविज़न पर
नेटफ्लिक्स की कोई फिल्म देखती हो,
न ही चाय पीने के लिए
कोई पड़ोसी ही आते हैं!
तुमको ध्यान से देख रही थी
कि तुमको कुछ भी नहीं चाहिए था
खुश रहने के लिए –
तुम्हारी तो फितरत ही है खुश रहने की!
कितनी आज़ाद हो तुम ए मैना!
लॉक डाउन तो अब हुआ है,
पर शायद हम इंसान तो बरसों से क़ैद ही हैं!
यह भी सच है
कि आज़ादी के साथ-साथ
तुम्हारे ऊपर ज़िम्मेदारी भी बहुत है!
किसी दिन तुम्हें बुखार आ जाए
फिर भी तुम्हें दाना लेने तो ख़ुद ही जाना होता है, है ना?
वैसे शायद यह ज़िम्मेदारी
अच्छी ही होती है,
आखिर तुम किसी पर बोझ तो नहीं बनतीं-
सीख लेती हो कि कैसे लड़ते हैं, जूझते हैं और आगे बढ़ते हैं!
और कैसे जगाते हैं आत्मविश्वास!
सच में, ए मैना!
आज बहुत कुछ सिखा गयीं तुम मुझे
जाने-अनजाने में!
अब जब भी मैं किसी मन की उथल-पुथल से
गुज़र रही होऊँगी तो देख लूंगी एक बार फिर से तुमको,
हो सकता है मुझे मिल जाए वो परम ख़ुशी
जिसकी चाहत तो हर कोई करता है
पर वो हाथ से फिसलती ही जाती है!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈