श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं एक भावप्रवण रचना “मानवता की पीर लिखूँगा”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 58☆
☆ मानवता की पीर लिखूँगा ☆
खुद अपनी तकदीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
रंजो-गम जो कह ना पाए
अपनों से कभी लड़ न पाए
हलातों से उलझी हुई मैं
मन की टूटी धीर लिखूंगा
मानवता की पीर लिखूँगा
कैसे सिसकीं मेरी आँखें
अरमानों की उठी बरातें
मन के कोने में बैठा वह
कहता अब जागीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
कोरोना से डर कर बैठे
सच्चाई से जबरन ऐंठे
समझ सके न झूठ की फितरत
कैसे मैं रणवीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
बे-कामी अरु बेरुजगारी
युवकों की बढ़ती लाचारी
भ्रमित हो रही नई पीढ़ी
क्या उनकी तदवीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
खतरे में नारी की अश्मिता
दुस्साशन की बढ़ी दुष्टता
कृष्णा कौन बचाने आये
कैसे हरते चीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
भ्रष्टाचार गले तक पहुँचा
जिसने चाहा उसने नोंचा
“संतोष” कब तक चुप रहेगा
साहस से शमशीर लिखूँगा
मानवता की पीर लिखूँगा
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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