डॉ भावना शुक्ल
(डॉ भावना शुक्ल जी (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं “भावना के दोहे ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 67 – साहित्य निकुंज ☆
☆ भावना के दोहे ☆
बढ़ता जब अँधियार है,
दीपक होता दीप्त।
समरसता सँग प्रेम का,
करता भाव प्रदीप्त।।
द्वार-द्वार पर सज रहे,
दीवाली के दीप।
चौक पुरतीं बेटियाँ
आँगन गोबर लीप।।
दीवाली का अर्थ है,
मन में भरो उजास।
करिए शुभ की कामना,
रखिए शुभ की आस।।
मन में हो सौहार्द यदि,
लेंगे हिरदय जीत।
प्रेम भाव से भेंटिए,
शत्रु बनेंगे मीत।।
जगमग होती हर गली,
फैल रहा आलोक।
करिए ऐसी कामना,
मिटें हृदय के शोक।।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
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बहुत सुंदर विचार आदरणीया भावना जी
Bahut badhiya dohe