प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
( आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी की एक भावप्रवण कविता सब चाहते जीवन में सदा सुख से रह सकें। हमारे प्रबुद्ध पाठक गण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 14 ☆
☆ सब चाहते जीवन में सदा सुख से रह सकें ☆
सिख पारसी ज्यू ईसाई हिंदू और मुसलमान
है एक ही भगवान की संतान सब इंसान
हैं धर्म कई एक ही पर सार है सबका
कुदरत ने ही पैदा किए सब को सदा समान
सब चाहते जीवन में सदा सुख से रह सकें
आपस में अपनी बातें सभी मिलकर के कह सकें
खुशियों को कभी ना लगे किसी की बुरी नजर
हित के लिए ही करते हैं सब धार्मिक अनुष्ठान
हर धर्म के आधार हैं मन के गढ़े विश्वास
सब धार्मिक स्थल हैं हर जगह आसपास
करते जहां सिजदा मनोतियां भी साथ-साथ
दो चार नहीं हैं देश में ऐसे हैं कई स्थान
मंदिर हो या मस्जिद हो ,मढ़िया हो या मजार
हर रोज दुआ पाने को जाते हैं कई हजार
सबके वहां है एक भाव भेद नहीं कुछ
हो धर्म किसी का कोई वे सब पर मेहरबान
उस ठौर पर रहता नहीं किसी मन में कोई अभिमान
दरबार में उसके सभी इंसान हैं सब समान
सब चाहते हर ठौर हो दुनिया में कुशलता
अल्लाह कहो ईश्वर कहो वह एक ही भगवान
© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈