श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण कविता “बीती हुई दिवाली की यादें ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 16 ☆
☆ बीती हुई दिवाली की यादें ☆
दिवाली के दीप
जब जगमगाते हैं
बीते हुए दिन
याद आते हैं
अब भी-
हर लौ में
तुम मुस्कुराती हो
तुमसे रोशन
घर बार हो जाते है
वो तुम्हारे हाथ में थी फुलझड़ी
वो मेरे हाथ में थी
पटाखों की लड़ी
वो गगन में उड़ते हुए
आकाशदीप
वो मेरे पास थी
तुम्हारी दो आंखें बड़ी-बड़ी
जब तुम छुपकर
छत पे आयी थी।
कितनी छत पर
छाई रोशनाई थी
जैसे अंधेरी रात में
चाँद निकला था
अपनी रात दीपों से
जगमगाई थी।
कितनी स्वादिष्ट
वो मिठाई थी।
जो छुपाकर
तुम लाई थी।
कितने प्यार से
तुमने खिलाई थी।
हम दोनों ने
मिलकर खाई थी।
वो तुम्हारा नया नया परिधान
वो तुम्हारी आन और शान
वो अधखुली आंखों से
तुम्हारे व्यंग बाण
वो तुम्हारा मुझको
करना परेशान
यह बातें जब भी
याद आती है
शान्त लहरों मे
तूफान लाती है
बेमजा हुई
इस जिंदगी में
कुछ पल रंगीनियां
झिलमिलाती है
अब यह सब व्यर्थ है
इन सबका ना कोई अर्थ है
ना जाने तुम कहाँ
और हम कहाँ
आज यह जमाना
दीपोत्सव में गर्क है
© श्याम खापर्डे
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