डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।
कुछ दिनों से कई शहरों में बड़े पैमाने पर सिंथेटिक दूध, नकली पनीर, घी तथा इन्ही नकली दूध से बनी खाद्य सामग्री, छापेमारी में पकड़ी जाने की खबरें रोज अखबार में पढ़ने में आ रही है। यह कविता कुछ माह पूर्व “भोपाल से प्रकाशित कर्मनिष्ठा पत्रिका में छपी है। इसी संदर्भ में आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है कविता “कौन दूध इतना बरसाता है?”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य – # 9 ☆
☆ कौन दूध इतना बरसाता है? ☆
सौ घर की बस्ती में
कुल चालीस गाय-भैंस
फिर इतना दूध कहाँ से
नित आ जाता है।
चार, पांच सौ के ही
लगभग आबादी है
प्रायः सब लोग
चाय पीने के आदि है
है सजी मिठाईयों से
दस-ग्यारह होटलें
वर्ष भर ही, पर्वोत्सव
घर,-घर में, शादी है।
नहीं, कहीं दूध की कमी
कभी भी पड़ती है,
सोचता हूँ, कौन
दूध इतना, बरसाता है
सौ घर की………….।
शहरों में सजी हुई
अनगिन दुकाने हैं
दूधिया मिष्ठान्नों की
कौन सी खदाने हैं
रंगबिरंगे रोशन
चमकदार आकर्षण
विष का सेवन करते
जाने-अनजाने हैं।
जाँचने-परखने को
कौन, कहाँ पैमाने
मिश्रित रसायनों से
जुड़ा हुआ, नाता है
सौ घर की……….।
नए-नए रोगों पर
नई-नई खोज है
शैशव पर भी,अभिनव
औषधि प्रयोग है
अपमिश्रण के युग में
शुद्धता रही कहाँ
विविध तनावों में
अवसादग्रस्त लोग हैं।
मॉलों बाजारों में
सुख-शांति ढूंढते
दर्शनीय हाट,
ठाट-बाट यूँ दिखाता है
सौ घर की बस्ती में….।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014