श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण एवं भावप्रवण कविता “इक ज्योति जलाइए”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 17 ☆
☆ इक ज्योति जलाइए ☆
हर मायूस दिल में
इक ज्योति जलाइए
दीपोत्सव का उत्सव है
सब मिलकर मनाइए
माना हवाओं में
जहर बहुत है
माना तूफानों में
कहर बहुत बहुत है
घमंड, अभिमान के
मेले लग रहे हैं
बिक रहा इन्सान
और बिकते इन्सानों के
ठेले लग रहे हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम
कशमकश में पड़े हैं
अटृहास करते
चहुं ओर रावण खड़े हैं
वध कीजिये इन दुष्टात्माओं का
सत्य को बचाइये
इक ज्योति जलाइये
कुछ उम्मीद लिए
आसमान में तांक रहें हैं
फिर अपनी झोपड़ी के
अंधेरे में झांक रहें हैं
चाँद सितारे
हो तुमको मुबारक
उनको तो है
बस जुगनुओं की जरूरत
कोई टूटा हुआ तारा
उनकी नजर कर देता
अरमानों से उनकी
झोली भर देता
कुछ पल जीवन में
खुशियाँ आ जाती
मिठाई की मिठास तो
सबको है भाती
बुझ गई आँखों में
रोशनी जलाइए
टूटे हुए दिलों को
धीरज बंधाइए
बाँटिए खुशियाँ
उनको गले लगाइए
इक ज्योति जलाइए
कब तलक एक दूसरे से
नफ़रत करोगे
इन्सान हो इन्सान से
कब मुहब्बत करोगे
जख्मों को कुरेदोगे
तो क्या फ़ायदा होगा ?
भर जाये जख्म ऐसा
क्या कोई कायदा होगा ?
मंदिर की घंटियाँ हो
या मस्जिद की हो अजान
हर जगह सर झुकाके
खड़ा है इन्सान
कुछ सौदागर यह अफीम
बाँट रहे हैं
एकता, भाईचारे की जड़ों को
काट रहे हैं
इन भटके हुए राहगीरों को
सही राह दिखाइए
इक ज्योति जलाइए
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈