श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं भाई बहिन के प्यार की अनुभूति लिए एक अतिसुन्दर लघुकथा “दूजा राम”। कई बार त्योहारों पर और कुछ विशेष अवसरों पर हम अपने रिश्ते निभाते कुछ नए रिश्ते अपने आप बना लेते हैं। शिक्षाप्रद लघुकथाएं श्रीमती सिद्धेश्वरी जी द्वारा रचित साहित्य की विशेषता है। इस सार्थक एवं भावनात्मक लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 69 ☆
☆ लघुकथा – दूजा राम ☆
वसुंधरा का ससुराल में पहला साल। भाई दूज का त्यौहार। अपने मम्मी-पापा के घर दीपावली के बाद भाई दूज को धूमधाम से मनाती थी। परंतु ससुराल में आने के बाद पहली दीपावली पर घर की बड़ी बहू होने के कारण दीपावली का पूजन बड़े उत्साह से अपने ससुराल परिवार वालों के साथ मनाई।
ससुराल का परिवार भी बड़ा और बहुत ही खुशनुमा माहौल वाला। सभी की इच्छा और जरूरतों का ध्यान रखा जाता। हमउम्र ननद और देवर की तो बात ही मत कहिए। दिन भर घर में मौज-मस्ती का माहौल बना रहता।
परंतु भाई दूज के दिन सुबह से ही अपने छोटे भाई की याद में वसुंधरा का मन बहुत उदास था। दिन भर घर में भाई के साथ किए गए शैतानी और बचपन की यादों को याद कर वह मन ही मन उदास हो उसकी आँखों में आंसू भर भर जा रहे थे। क्योंकि ये पहला साल हैं जब वह अपने भाई से दूर है।
पतिदेव की बहनें और ननदें अपने भैया को दूज का टीका लगा हँसी ठिठोली कर रहीं थी।
परंतु बस अपनी भाभी वसुंधरा के चेहरे पर कोई मुस्कान नहीं ला पा रहे थे। सासु माँ और पतिदेव भी परेशान हो रहे थे। आठ दस ननद देवर भाभी को थोड़ा परेशान देखकर सभी अनमने से थे।
सभी टीका लगा कर उठ रहे थे परंतु एक राम जिनका नाम था बहुत ही समझदार, नटखट और मासूम सा देवर बैठा रहा।
सभी ने कहा… “भाई क्यों बैठा है उठ प्रोग्राम खत्म हो गया।” और एक बार फिर से ठहाका लगा गया।
परंतु अचानक सब शांत हो गए राम ने अपनी भाभी की तरफ ईशारा कर कहा…. “भाभीश्री दूज का चाँद तो मैं नहीं बन पाऊंगा, आपके भाई जैसा, परंतु मुझे दूजा राम समझकर ही टीका लगाओ। तभी मैं यहाँ से उठूंगा।”
वसुंधरा भाभी के बड़े-बड़े नैनों से अश्रुधार बहने लगी। वह दौड़ कर पूजा की थाली ले आई। दूज का टीका लगाने चल पड़ी। और अपने इस अनोखे रिश्ते को निभाने तैयार हो गई।
तिलक लगा ईश्वर से सारी दुआएं मांगी। घर में सभी बड़े ताली बजाकर आशीष देने लगे। देखते-देखते ही वसुंधरा का चेहरा खिल उठा।
उसे ससुराल में अपने देवर के रुप में भाई दूज पर अपना भाई जो मिल गया दूज का चाँद।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈