डॉ भावना शुक्ल
☆ साप्ताहिक स्तम्भ # 69 – साहित्य निकुंज ☆
☆ लघुकथा – कोठे की शोभा ☆
हर वर्ष की तरह इस बार भी कालेज में डांस कंपटीशन हुआ । हर बार की तरह प्रतिभाओं की भी कोई कमी नहीं थी। परन्तु स्निग्धा उन सबसे अलग साबित हुई । उसके नृत्य ने सबका मन मोह लिया ।इतनी छोटी सी उम्र में उसके पांवों की थिरकन और वाद्यों की सुरताल के साथ उनका सामंजस्य अदभुत था । निर्णायको ने एक मत से उसे विजेता घोषित करने में जरा भी देर नहीं की । कालेज का खचाखच भरा हाल इस निर्णय पर देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा । इतना ही नहीं उसे अंतर्विश्वविद्यालयीन प्रतियोगिता के लिए भी नामांकित कर दिया गया ।
पुरस्कार देते समय मंच पर जज महोदय ने कहा ‘बेटा ! इस अवसर पर हम चाहते हैं कि आपकी माता जी को भी सम्मानित किया जाय क्योंकि आपकी इस प्रतिभा को निखारने में उनका योगदान निश्चय ही सबसे अधिक रहा होगा ।यदि वे यहां उपस्थित हों तो उन्हें भी मंच पर बुलाइए । उस महान हस्ती से हम भी मिलना चाहेंगे । ”
तभी नीचे से आवाज आईं ,” सर , स्निग्धा डांस इसलिए अच्छा करती है , क्योंकि इनकी माता जी किसी कोठे की शोभा हैं । वे स्निग्धा के किसी कार्यक्रम में नहीं जातीं क्योंकि , कोठे की शोभा कोठे में ही शोभा देती है।”
जजों के साथ ,सारा कक्ष इस सूचना से हतप्रभ था ।
© डॉ.भावना शुक्ल
सहसंपादक…प्राची
प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120, नोएडा (यू.पी )- 201307
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बढ़िया