श्री श्याम खापर्डे
(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं । सेवारत साहित्यकारों के साथ अक्सर यही होता है, मन लिखने का होता है और कार्य का दबाव सर चढ़ कर बोलता है। सेवानिवृत्ति के बाद ऐसा लगता हैऔर यह होना भी चाहिए । सेवा में रह कर जिन क्षणों का उपयोग स्वयं एवं अपने परिवार के लिए नहीं कर पाए उन्हें जी भर कर सेवानिवृत्ति के बाद करना चाहिए। आखिर मैं भी तो वही कर रहा हूँ। आज से हम प्रत्येक सोमवार आपका साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी प्रारम्भ कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर, अर्थपूर्ण, विचारणीय एवं भावप्रवण कविता “नशे का जहर”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 18 ☆
☆ नशे का जहर ☆
दीवाली के दिन
जब उसने संयंत्र से
बोनस पाया
बच्चों के लिए
पटाखे, मिठाईयां
और अपने लिए
देशी बोतल लाया
दीप जले, मिठाईयां बंटी
पटाखे फूटे
द्वार द्वार जगमगाये
उसने बोतल खोलकर
जमकर पी
कि
शायद दुखों को
कुछ पल भूल जायें
लेकिन-
कुछ ही क्षणों बाद
वह मृत्यु से जूझ रहा था
दीवाली का दीपक
बुझने से पहले ही
इस घर का
दीपक बुझ रहा था।
पता नहीं
यमराज ने कैसा
खेल रचा था?
सारी बस्ती में
कोहराम मचा था
त्योहारों पर अक्सर
ऐसा ही कुछ
होता रहता है
प्रतिवर्ष हम
जलाते हैं रावण को
फिर भी
वह नहीं मरता है
तब-
दावानल सा
लगता है तन में
अंगारे सा प्रश्न
उठता है मन में
क्या खुशी, गम या
तीज त्योंहारों पर
नशा करना
वाकई जरूरी है?
क्या अभावों की कटुता
कुछ पल भुलाने के लिए
यह जहर पीना
मानवीय मजबूरी है?
© श्याम खापर्डे
फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो 9425592588
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈