सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा
(सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी सुप्रसिद्ध हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी की साहित्यकार हैं। आप अंतरराष्ट्रीय / राष्ट्रीय /प्रादेशिक स्तर के कई पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं । हम आपकी रचनाओं को अपने पाठकों से साझा करते हुए अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं। सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार शीर्षक से प्रत्येक मंगलवार को हम उनकी एक कविता आपसे साbharatiinझा करने का प्रयास करेंगे। आप वर्तमान में एडिशनल डिविजनल रेलवे मैनेजर, पुणे हैं। आपका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।आपकी प्रिय विधा कवितायें हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण रचना “साँचा”। )
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☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सुश्री नीलम सक्सेना चंद्रा जी का काव्य संसार # 59 ☆
उसकी नीली आँखों को
उसके गोरे हाथों को
उसके झूमते पांवों को
डाल दिया गया सांचे में
और फिर उन सांचों को
कई दिनों तक जकड़कर रख दिया
ताकि
वो वही देखे जहां उसकी आँखों की दिशा तय की गयी थी,
वो वही काम करे जहां उसके हाथों को ढाला गया था,
वो वहीँ कदम रखे जिस ओर उसके पाँव को दिशा दी गयी थी…
इन सांचों में ढालते वक़्त
समाज यह भूल गया
कि उसकी नाक को, उसके दिमाग को
किसी सांचे में नहीं ढाला जा सकता था
वो तो स्वच्छंद थे…
वो आँगन में खड़ी-खड़ी
ख़्वाबों की वो सुगंध सूँघती
जो उसे देती एक नया अनुभव
और जिसकी ओर वो खिंची चली जाती…
वो ऐसी कथाएँ वाचती
जो उसको दे देते पर
और वो
कभी आसमान को चूमती
कभी धनक के झूलों में बैठती
और परिंदों सी फिरती रहती!
समाज को जब मालूम हुआ
कि वो इस तरह उड़ने लगी है,
उन्होंने पूरी की पूरी कोशिश की
कि उसे समूचा ही सांचे में ढाल दिया जाए-
पर तब तक उसके परों में
इतनी जान आ गयी थी
कि वो तोड़कर साँचा उड़ गयी
और देखने वाले,
देखते ही रह गए!
© नीलम सक्सेना चंद्रा
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
बहुत खूबसूरत??