सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य  विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं ।  वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की  ऐसी ही एक प्राकृतिक आपदा पर आधारित भावप्रवण कविता  ‘नजरें पार कर’।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 2 ☆

☆ नजरें पार कर

 

उस गली से गुजरते हुए
खटकता है मुझे,
जहाँ आखेटक होते हैं खड़े
ताकते हुए।
जो नारी होने का अहसास
करवाते हैं ।
कुछ कठपुतलियाँ भी साथ
हो लेती हैं।
बहेलिया अपना काम करते हैं,
मैं अपना।
क्योंकि, उस गली के किनारे
कुछ पेड़ -पौधे उगाए गए हैं ।
जिनमें तुलसी, गुलाब,  गेंदें
चमेली और रातरानी
के फूल महकते हैं ।
मैं उनको निहारने का
आनंद उठाने के लिए
उस गली से गुजरती हूँ,
नजरें पार कर।

उन फूलों का हिल डुलना
भाता है मन को।
बंधनहीन लहराती सुगंध
छू लेती है मन को।
उनसे मन भर लेने को
मैं उस गली से गुजरती हूँ,
नजरें पार कर ।

क्योंकि, फूल
आखेटक, बहेलिया या कठपुतली
नहीं हैं ।
इसलिए मैं उस गली से
गुजरती हूँ ।
नजरें पार कर ।

 

© सुजाता काळे ✍

पंचगनी, महाराष्ट्र।

9975577684

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