डॉ कुंदन सिंह परिहार

(वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है आपका एक  अतिसुन्दर व्यंग्य  ‘समाज-सुधार की क्रान्तिकारी योजना’।  बचपन से पढ़ा था कि- जहाँ न पहुंचे ‘रवि’, वहां पहुँचे ‘कवि’। अब तक किसी ने लिखा नहीं, इसलिए लिख रहा हूँ कि – जहाँ न पहुँचे ‘सरकार’,वहाँ पहुँचे ‘व्यंग्यकार’। आशा है इस शीर्षक से कोई न  कोई, कुछ तो लिखेगा। अब इसके आगे लिखने नहीं डॉ  परिहार जी  के व्यंग्य को पढ़ने की जरुरत है। इस सार्थक व्यंग्य रचना के लिए डॉ परिहार जी की लेखनी को सादर नमन।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 78 ☆

☆ व्यंग्य – समाज-सुधार की क्रान्तिकारी योजना

अभी हाल में राजधानी में एक बड़ी हृदयविदारक घटना घट गयी। तीन चार पिता अपने होनहार पुत्रों को नौकरी में लगवाने के इरादे से संबंधित डिपार्टमेंट में चालू रिश्वत के रेट का पता लगाने गये और रेट की घोषणा होने पर उनमें से दो ‘कोमा’ में चले गये और बाद में उनमें से एक की ज़िन्दगी मेंं ‘फुल स्टॉप’ लग गया।

इस दुर्घटना पर भारी हंगामा मच गया और विरोधी पार्टियों ने बात संसद में उठा दी कि सरकार रिश्वत के धक्के से मरने वालों की समस्या की तरफ पूरी तरह उदासीन है। इस तोहमत को धोने के लिए सरकार ने फटाफट एक कमेटी बना दी कि समस्या का गहराई से अध्ययन करे और तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

कमेटी ने तीन महीने के बजाय छः महीने में अपनी 848 पेज की रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमें समस्या के हर पहलू का बारीकी से अध्ययन किया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के संविधान में नागरिकों को जो मौलिक अधिकार दिये गये हैं उनमें नौकरी में बराबरी का अधिकार और जिन्दा रहने का अधिकार शामिल हैं, लेकिन रिश्वतखोरी इन दोनों को चाँप कर बैठ गयी है। कमेटी ने माना कि हमारे महान मुल्क में रिश्वतखोरी एक संस्था का रूप ले चुकी है और हमारे राष्ट्रीय वजूद में कुछ ऐसे पैवस्त हो गयी है जैसे मजनूँ के वजूद में लैला पैवस्त हो गयी थी। हालत ये है कि अगर इस ज़हरीले काँटे को निकालने की कोशिश की गयी तो काँटे के साथ मरीज़ की जान निकलने का ख़तरा पैदा हो सकता है।

कमेटी ने बड़ी चिन्ता के साथ लिखा कि रिश्वतखोरी ने हमारे मुल्क में बड़े पैमाने पर गैरबराबरी और अन्याय पैदा कर दिया है। जिनके पास रिश्वत देने के लिए पैसा है वे अच्छी अच्छी नौकरियाँ हथया लेते हैं और इस मुल्क के जो सपूत प्रतिभाशाली लेकिन गरीब हैं वे नौकरी के कारवाँ को गुज़रते हुए देखते रह जाते हैं। नौकरियों के सिकुड़ने के साथ उन्हें हासिल करने के रेट इतने ऊँचे हो गये हैं कि काला पैसा कमाने वाले पुरुषार्थी ही उन्हें क्रय कर पाते हैं।

कमेटी ने लिखा कि समस्या का दूसरा पहलू यह है कि जिनके पास रिश्वत का पैसा पहुँचता है वे अपनी औलादों के लिए अच्छी नौकरियाँ खरीद लेते हैं और इस तरह उनकी आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुनहरा और सुरक्षित हो जाता है। जिन बापों के पास नौकरियाँ खरीदने के लिए पैसा नहीं होता या जिन्होंने अपनी नौकरी में मौकों का फायदा नहीं उठाया, उनकीऔलादें कुछ दिनों के लिहाज के बाद उन्हें खुल्लमखुल्ला नाकारा और नालायक कहने लगती हैं, जिससे परिवार और समाज में अशान्ति का वातावरण पैदा होता है।

समस्या पर पूरा विचार करने के बाद कमेटी इस नतीजे पर पहुँची कि आम आदमी को रिश्वतखोरी से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाये जाएं कि साँप भी मर जाए और लाठी भी सलामत रहे, यानी रिश्वतखोरी की संस्था भी बची रहे और आम आदमी में उसके धक्के को झेलने की ताकत पैदा हो सके। इस लिहाज से कमेटी ने कई बहुमूल्य सुझाव दिये, जिनमें से ख़ास ख़ास नीचे दिये गये हैं—–

रिश्वत-ऋण की व्यवस्था करना:-

कमेटी ने यह क्रांतिकारी सुझाव दिया कि जिस तरह मँहगी शिक्षा को झेलने के लिए छात्रों को शिक्षा-ऋण की व्यवस्था की गयी है, उसी तरह रिश्वत देने के लिए ऋण की व्यवस्था की जाए ताकि कोई नागरिक ज़िन्दगी के अच्छे मौकों से महरूम न रहे। शिक्षा-ऋण की व्यवस्था इसलिए की गयी है कि ऊँची फीस की वसूली मेंं बाधा न पड़े और छात्रों का दिमाग विरोध की दिशा में न भटके। इसी तरह रिश्वत-ऋण की व्यवस्था सब राष्ट्रीयकृत बैंकों में हो।

इसके लिए प्रक्रिया ऐसी होगी कि व्यक्ति ऋण-आवेदन मेंं रिश्वत देने के उद्देश्य, रिश्वत लेने वाले कर्मचारी/अधिकारी का नाम और विभाग, तथा माँगी गयी रकम का ब्यौरा देगा। साथ ही फार्म पर रिश्वतखोर कर्मचारी/अधिकारी इस बात की तस्दीक करेगा कि उल्लिखित रकम सही है। वह यह वचन भी देगा कि जिस काम के लिए रिश्वत ली जा रही है वह एक समय-सीमा के भीतर पूरा होगा। यह इसलिए ज़रूरी है कि रिश्वत की रकम ज़ाया न हो। यदि रिश्वतखोर अफसर समय-सीमा में काम नहीं करता तो फिर उस पर आई.पी.सी. के तहत रिश्वतखोरी और चारसौबीसी की कार्यवाही की जा सकेगी। वादा पूरा करने पर उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं होगी।

कुछ वर्गों के लिए ऋण मेंं सब्सिडी:-

कमेटी ने यह सुझाव दिया कि कुछ वर्गों को रिश्वत-ऋणों मेंं सब्सिडी की सुविधा दी जाए। ये वर्ग विद्यार्थी, महिलाएं, वरिष्ठ नागरिक, और गरीबी-रेखा से नीचे वाले हो सकते हैं। इनके द्वारा लिये जाने वाले रिश्वत-ऋणों का पचास प्रतिशत भार सरकार के द्वारा वहन किया जाए।

अन्य क्षेत्रों में विस्तार:-

कमेटी ने यह सुझाव दिया कि कालान्तर मेंं इस ऋण सुविधा का विस्तार दहेज आदि के क्षेत्रों में भी किया जाए, अर्थात दहेज देने के लिए भी बैंक ऋण प्राप्त हो।
वजह यह है कि सारी वीर-घोषणाओं और कानूनों के बावजूद हमारे धर्म-प्रधान देश में दहेज-प्रथा दिन-दूनी रात-चौगुनी फल-फूल रही है और दहेज की रकम हजारों से बढ़कर करोड़ों में पहुँच गयी है। बैंकों से दहेज-ऋण प्राप्त होने लगे तो जो लोग अपनी कन्या की ‘स्तरीय’ शादी करना चाहते हैं उनकी मुराद पूरी होगी और शादी के बाद लड़कियों को होने वाले कष्ट कम होंगे। तब शादी के दरमियान कन्या के पिता को अपनी पगड़ी वर के पिता के चरणों में रखने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, और इस तरह के दृश्य भारतीय फिल्मों से गायब हो जाएंगे।

सावधानियाँ:-

कमेटी ने यह भी टिप्पणी की कि रिश्वत-ऋणों के क्रियान्वयन में पर्याप्त सावधानियाँ बरती जाएं। ऐसा न हो कि रिश्वत देने वाले और लेने वाले आपस में गुप्त समझौता करके बैंकों और सरकार का मुंडन करने लग जाएं। इस लिए हर बैंक में छानबीन समिति बनायी जाए जो रिश्वत-ऋणों पर कड़ी नज़र रखे और उनका सही उपयोग सुनिश्चित करे।

कमेटी ने अन्त में लिखा कि उसे पूरा भरोसा है कि इन क्रान्तिकारी कदमों से भारतीय समाज की बहुत सी बुराइयों का अन्त हो सकेगा और आम आदमी सुकून की ज़िन्दगी जी सकेगा।

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

 ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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